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________________ ११६ किसने कहा मन चंचल है मनुष्य में । अब उसके सामर्थ्य का अन्दाजा लगाया जा सकता है ? शक्ति के इस अक्षय भंडार का स्वामी मनुष्य क्या नहीं कर सकता ? धर्म को साधना, मन को पकड़ना-ये तो प्रारंभिक बातें हैं । हमारी साधना मन को पकड़ने की साधना नहीं है, मन को समाप्त करने की साधना है, अमन होने की साधना है। कुछ प्राणी समनस्क होते हैं और कुछ अमनस्क । कुछ प्राणियों को मन प्राप्त है और कुछ प्राणियों को मन प्राप्त नहीं है । समनस्क प्राणी संज्ञी कहलाते हैं और अमनस्क प्राणी असंज्ञी। मनुष्य समनस्क प्राणी है। उसे संज्ञा उपलब्ध है । उसका मन विकसित है। किन्तु एक अवस्था ऐसी भी होती है जिसमें मनुष्य 'नो-संज्ञी नोअसंजी' बन जाता है । वह 'नो-मन' बन जाता है। मन नष्ट हो जाता है, समाप्त हो जाता है। मन उत्पन्न ही नहीं होता। उस अवस्था में केवल चेतना शेष रहती है । यह शक्ति के विस्फोट का परिणाम है, शक्ति की निष्पत्ति है । मनुष्य अपनी इस अनन्त शक्ति को पहचाने और उसको विकसित करे। शक्ति का विकास प्रयत्न-सापेक्ष है। जितनी भी साधनाएं चलती हैं, वे सब शक्ति के विकास के लिए ही हैं। साधना इसीलिए होती है कि सुप्त चेतना जागे, सुप्त शक्तियों का विकास हो। मनुष्य में शक्ति है, पर जब तक वह सुप्त रहती है तब तक कोई निष्पत्ति नहीं आती । सांप कुंडली लगाकर बैठा है । शान्त है। किसी को उसका भय नहीं सताता। जब वही सांप फुफकारता है, तब सारा वातावरण भय से कांप उठता है । बुझी हुई आग पर बच्चा भी पैर रखकर चल पड़ता है । जब वह आग धधकती है, तब बड़े-बड़े भी उसके पास जाने से झिझकते हैं । जब शक्तियां सोई हुई रहती हैं तब मनुष्य बुझी हई आग की भांति निष्क्रिय जीवन जीता है। जब शक्तियों का जागरण होता है तब वही मनुष्य प्रज्वलित अग्नि की भांति दीप्त होकर क्रियाशील जीवन जीने लगता है। यह सारा अन्तर सुषुप्ति और जागृति का है । यह सारा अन्तर सुप्त शक्तियों का और जागृत शक्तियों का है । हमारा सारा प्रयत्न एक दिशागामी है । हम सुप्त शक्तियों को जानने के लिए ही साधनों से गुजरते हैं । हम चाहते हैं कि जो चेतना सुप्त है, वह जाग जाए । शक्ति के जागने से बहुत-से अनुभव होने लगते हैं। दबी हुई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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