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________________ ८. उपसंहार वैदिक काल की तन्वङ्गी स्तुति प्रस्रविणी भागवत काल तक आतेआते समस्त वसुन्धरा को आप्यायित करती हुई विराट् रूप धारण करती है । जिस नैसर्गिक कन्या का जन्म ऋषियों के तपोपूत आश्रम में हुआ था, उसका लालन-पालन, साज शृंगार तथा परिष्करण वैयासिकी प्रतिभा से सजित भागवतीय महाप्रासाद में सम्पन्न हुआ। जिस अश्ममूर्ति का सर्जन वैदिक प्रज्ञावादियों ने किया था, ऋषि वाल्मीकि ने उसे रूपायित किया था, महाभारतकार ने उसे संस्कृत किया था वह मूर्ति भागवतीय मधुमय निकेतन में आते-आते प्राणवंत हो उठी । चाहे प्रज्ञाचक्षुओं द्वारा साक्षात्कृत वेद हों, चाहे महर्षि की करुणामयी वाणी से निःसृत शीतसलिला हो चाहे वैयासिकी ज्ञान गंगा हो या सात्त्वतसंहिता हो सर्वत्र स्तुति काव्य का सौन्दर्य विलोकनीय है । श्रुतिकाल से लेकर आज तक इसकी परम्परा अविच्छिन्न है । प्रियतम में अधिष्ठित चरणों में शब्दों के स्तुति में उपास्य के गुणों का संकीर्तन निहित रहता है | सर्वात्मना प्रभु चरणों में समर्पित एवं मनसा, वाचा, कर्मणा अपने भक्त हृदयस्थ भावों को उस उपास्य किंवा प्रियतम के माध्यम से विनिवेदित करता है, उसे ही स्तुति कहते हैं । स्तुति की भाषा सरल हृदय की भाषा होती है । उसमें बाह्य वृत्तियों का सर्वथा अभाव पाया जाता है। हर्ष, दुःख, आवेग, चिन्ता, आनन्द एवं समाधि की स्थिति में स्तुति काव्य का प्रणयन होता है । भूयोपकार से उपकृत या निश्रेयसवाप्ति होने पर हर्षातिरेक की अवस्था में या सर्वथा निस्सहाय अवस्था में जब आसन मृत्यु सामने खड़ा हो, कोई रक्षक न दिखाई पड़े, अपनी शक्ति भी समाप्त हो तब प्रभु चरणों में स्तुत्यांजलि अनायास ही भक्त हृदय से निःसृत होकर समर्पित होने लगती है । तीसरी एवं सर्वश्रेष्ठ कोटी है - जब भक्त की चित्तवृत्तियां मन, वाणी और शरीर सबके सब प्रभु में एकत्रावस्थित हो जाती हैं, तब उस भक्त के हार्द धरातल से स्तुति उद्भूत होती है । श्रीमद्भागवत महापुराण स्तुतियों का आकर ग्रन्थ है । विविध विषयात्मक इस महापुराण के शरीर में स्तुतियां प्राणस्वरूप हैं । जैसे प्रभा से सूर्य का, ज्योत्स्ना से चन्द्रमा का, गंगा से भारत का, गन्ध से पृथिवी का, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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