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________________ २६० श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन वसुदेवकृत श्रीकृष्णस्तुति (१०.८५.२०) में भगवान् श्रीकृष्ण की महिमा का प्रतिपादन क्रम में भाषिक सौन्दर्य, सम्प्रेषणीयता और सहजाभिव्यंजकता अवलोकनीय है । मनोरम शब्दों का विनियोग हुआ है। संपूर्ण श्लोक प्रसाद एवं माधर्य गुण से मण्डित है। समर्पण भावना से युक्त प्रस्तुत श्लोक का श्रुतिमधुर पदविन्यास अवलोकनीय है-- तत्ते गतोऽस्म्यरणमद्य पदारविन्दमापन्नसंसतिभयापहमार्तबन्धो। एतावतालमलमिन्द्रियलालसेन मत्मिक त्वयि परे यदपत्यबुद्धिः ॥' श्रुतिकृतभगवत्स्तुति (१०.८८.१४-४१) कोमलकांत पदावली में विरचित है। इस स्तोत्र में गम्भीर तात्त्विक विषयों का विवेचन हृदयावर्जक है। इसमें सामासिक शैली का प्राचुर्य तो है ही साथ-साथ प्रसाद गुण एवं माधुर्य गुण का पुट वर्तमान है । अर्थ-गाम्भीर्य के कारण सारस्वतजन सहज रूप में अवगाहन कर सकते हैं । पात्रानुसार भाषा में वैलक्षण्य दिखाई पड़ता है। जब कोई भक्त सहज भाव से स्तुति करता है तब उसकी भाषा अत्यन्त सरल होती है, लेकिन जब भक्त की मानसिक स्थिति अति उन्नत होती है, वह स्वयं प्राप्त विविध शास्त्रों का ज्ञान अपनी स्तुति में अभिव्यक्त करने लगता है या उसका प्रतिपाद्य विषय दर्शन से संबद्ध हो तो उसकी भाषा का दुरूह होना स्वाभाविक है । “विद्यावतां भागवते परीक्षा" और "विद्या भागतावधिः" आदि सूक्तियां यहां पूर्णत: प्रस्थापित हैं। सभी दर्शनों का सार प्रस्तुत कर भागवतधर्म की प्रतिष्ठा की गई है। इस प्रकार भागवतीय स्तुतियों में भाषा का वैविध्य परिलक्षित होता है । एक ही स्तुति में जहां भक्ति या शरणागति का विवेचन करना है तो "रतिमुद्वहतादद्वागंगेवोघमुदन्वति"२ की तरह सरल एवं सहज ग्राह्य पदों का विनियोग हुआ है, तो वहीं पर “मायाजवनिकाच्छन्नमज्ञाधोक्षजमव्ययम्। जैसे संपूर्ण पंक्ति में एक ही शब्द का विन्यास परिलक्षित होता है। एक तरफ गोपीगणकृत श्रीकृष्ण स्तुति (१०.२९) में भाषा का सहज प्रवाह है जिसमें सामान्य जन भी सद्य: रम जाता है वहीं दूसरी तरफ श्रुतिकृत भगवत्स्तुति (१०.८७) में अर्थगाम्भीर्य एवं भावों की दुरूहता के कारण बड़े-बड़े विद्वानों की भी परीक्षा होने लगती है। परन्तु सर्वत्र प्रसादगुण का साम्राज्य विद्यमान १. श्रीमद्भागवत महापुराण १०.८५.१९ २. तत्रैव १.८.४२ ३. तत्रैव १.८.१९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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