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________________ २४१ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में गीतितत्त्व, छन्द और भाषा का अर्न्तदर्शन और रागात्मक अभिव्यक्ति पूर्णतया पायी जाती है। आध्यात्मिक, दार्शनिक एवं धार्मिक सिद्धांत भी इन गीतों में अभिव्यक्त हुए हैं। पूर्वोद्धृत गीतिकाव्य के तत्त्वों का विवेचन श्रीमद्भागवतीय स्तुतियों के आधार पर किया जा रहा है:-- १. संगीतात्मकता संगीतात्मकता भागवत की स्तुतियों में सर्वत्र पायी जाती है। ध्वनि और संगीत का जीवन के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है । संगीत जीवनदायिनी शक्ति के रूप में है । इसका प्रभाव चिरन्तन होता है। संगीत से मन मोहित होता है और आत्मानन्द में विभोर हो जाता है । संगीत से पशु-पक्षी जगत्, मनुष्य यहां तक बालक भी आकृष्ट हो जाते हैं। बालक जब रोने लगता है या सोता नहीं है तो मां लोरी गा गाकर सुलाती है। वह बालक संगीत के मधुमय स्वर लहरियों में आत्मविस्मृत हो आनन्द विभोर हो जाता है। गीत पर मुग्ध होकर वनविहारी तृणभक्षी मृगशिशु प्राण भी दे देते हैं। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष आदि चतुवर्ग का संगीत प्रकृष्ट साधक है । यही कारण है कि संस्कृत में नाद सौन्दर्य पर विशेष महत्त्व दिया गया है । संगीत से देवता, पार्वती पति शिव यहां तक गोपीपति श्रीकृष्ण भी वशीभूत हो जाते हैं गीतेन प्रीयते देवः सर्वज्ञः पार्वतीपतिः, गोपीपतिरनन्तोऽपि वंशध्वनिवशं गतः। सामगीतिरतो ब्रह्मा वीणासक्ता सरस्वती, किमन्ये यक्ष-गन्धर्व-देव-दानव-मानवाः ॥' भागवतीय स्तुतियों में पद-पद संगीत की सौन्दर्य-युक्त ध्वनि हृत्तन्त्रि को विकसित करती है । पितामह भीष्म भगवान् के कमनीय रूप का गायन कर रहे हैं। दुःख की अवस्था में मानव की पूर्व संचित वासना एवं अनुभूतियां साकार होकर गीत के रूप फुट पड़ती हैं। गजेन्द्र सरल सरस शब्दों से युक्त संगीत का गायन निविशेष के प्रति करता है न विद्यते यस्य च जन्म कर्म वा न नामरूपे गुणदोष एव वा। तथापि लोकाप्ययसम्भवाय यः स्वमायया तान्यनुकालमृच्छति ॥ जब जीव मात्र की वेदना तीव्र से तीव्रतम हो जाती है, उस स्थिति १. संगीतरत्नाकर- आनन्दाश्रमः, पृ० ६ २. श्रीमद्भागवत १.९.३३ ३. तत्रव ८.३.८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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