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________________ २४० श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन ४. भावतिरेकता ६. भाव सान्द्रता ७. चित्रात्मकता ८. समाहित प्रभाव ९. मार्मिकता १०. संक्षिप्तता ११. सरलता एवं सहजता श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में उपर्युक्त सभी तत्व विद्यमान हैं । स्तुतियों में गेय तत्त्व की प्रधानता होती है। भक्त सहज रूप से अन्तर्भावों से प्रेरित होकर कोमल, मधुर, सरस, सरल, मार्मिक और संगीतात्मकता से युक्त पदावलियों को भगवच्चरणों में समर्पित करता है । सुख और दुःख दोनों ही परिस्थितियों में भक्त प्रभु के अद्भुत लीला गुणों का जब स्मरण करता है, तब अनायास ही उसके हृदय से शब्द की सुन्दर रागात्मिका धारा प्रस्फुटित होने लगती है, जिसे हम आचार्यों की दष्टि में स्तुति कहते हैं। जब भक्त स्वात्मानुभूति से प्रेरित होकर अपने ही अन्दर तन्मय हो जाता है, सारे बाह्यवृत्तियों से इन्द्रियों को अलग कर अन्तर्मन में स्थापित कर देता है, तब उसके हार्द धरातल से सहज रूप में शब्द निकलने लगते हैं । उन शब्दों में भक्त की अनुभूति की ही प्रधानता रहती है और अपनी अनुभूति के अनुसार प्रभु को देखना चाहता है। वहां न कोई बाह्य कारण होता है, न कोई बाह्य जगत् का दबाव, जीव जब अपने शिव का दर्शन करता है तब अनायास ही अपने शिव का वर्णन करने लगता है । स्तुतियों के अतिरिक्त आठ गीत भी भागवत में पाये जाते हैं । यद्यपि वे गीत भी स्तुत्यात्मक हैं, तथापि अपेक्षाकृत दर्द एवं वेदना की तीव्रता की अधिकता के कारण भागवतकार ने उन्हें गीत संज्ञा से अभिहित किया है। वे गीत हैं --- १. वेणुगीत दशमस्कन्ध २१वां अध्याय २. गोपिका गीत " ३१वां अध्याय ३. युगलगीत " ३५वां अध्याय ४. कृष्णपत्नियों का गीत-दशमस्कन्ध ९०वां अध्याय ५. पिंगला गीत एकादश स्कन्ध, ८वां अध्याय ६. भिक्षुगीत -एकादश स्कन्ध, २३ वा अध्याय ७. ऐलगीत - " २६ वां अध्याय ८. भूमिगीत-द्वादश स्कन्ध, तीसरा अध्याय उपर्युक्त सभी गीत शृंगारिक, धार्मिक, उपदेशात्मक एवं निर्वेद संबंधी भावनाओं से युक्त एवं लालित्य तथा माधुर्य से परिपूर्ण हैं। इन गीतों में जीवन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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