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________________ २३२ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन नमोsकिञ्चनवित्ताय निवृत्तगुणवृत्तये । आत्मारामाय शान्ताय कैवल्यपतये नमः ॥ आत्माराम, शान्त और कैवल्यपति आदि शब्दों के उच्चारण से प्रज्ञा-बिम्ब की सृष्टि होती है । कीर्ति (यश) इन्द्रिय ग्राह्य भाव नहीं है, केवल बुद्धि के विषय हैं । जैसे मलयाचल की कीर्ति का विस्तार करने के लिए चन्दन प्रकट होता है उसी प्रकार पुण्यश्लोक राजा यदु की कीर्ति का विस्तार करने के लिए भगवान् अवतरित हुए हैं। यहां यश या कीर्ति से प्रज्ञा बिम्ब का निर्माण होता है । सत्य, ऋत आदि का वितरण भी प्रज्ञा का ही विषय होने से प्रज्ञा - बिम्ब के अन्तर्गत आता है सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं सत्यस्य योनि निहितं च सत्ये । सत्यस्य सत्यमृतसत्यनेत्रं सत्यात्मकं त्वां शरणं प्रपन्नाः ॥ भागवतकार ने अनेक स्थलों पर प्रज्ञा-बिम्ब का उपयोग किया है । सबका उल्लेख यहां नहीं किया जा सकता । प्रतीक विधान परम्परा अथवा मान्यता से जब कोई सम्बद्ध या असम्बन्धित अंश या वस्तु, किसी मूर्त या अमूर्त रूप पूर्ण तथ्य का द्योतक बन जाती है, तो वह वस्तु या अंश प्रतीक कहलाता है । जैसे कमल सौन्दर्य का, त्रिशूल एवं लिङ्ग शिवजी का स्वस्ति लक्ष्मी का, सुदर्शन विष्णु का प्रतीक माना जाता है । इस प्रकार प्रतीक में सम्पूर्ण की अप्रत्यक्ष अभिव्यक्ति होती है । " विभिन्न कोशग्रन्थों में तथा आलोचना ग्रन्थों में प्रतीक शब्द की व्याख्या की गई है । अंग, प्रतीक, अवयव, अपधन ये सब प्रतीक के पर्यायवाची शब्द हैं- " अंग प्रतीकोऽवयवोऽपधनो । वृहत् हिन्दकोष के अनुसार अंग, अवयव, अंग, भाग ये शब्द प्रतीक के समानार्थक हैं । प्रतिकन् निपातनात् दीर्घ । अवयव, अंग, पता, चिह्न, निशान इत्यादि भी प्रतीक के शब्दार्थ हैं । प्रतीक का अंग्रेजी रूपान्तर सिम्बल है । सिम्बल का अर्थ किसी दूसरी वस्तु का प्रतिनिधित्व करने वाला पदार्थ स्वीकार किया गया है । सी० डे० लेविस के शब्दों में "एक वस्तु के लिए प्रयुक्त होने वाले १. श्रीमद्भागवत १.८.२८ २. तत्रैव १.८.३२ ३. तत्रैव १०.२.२६ ४. वृहत् हिन्दी कोश- कामता प्रसाद, पृ० ८६५ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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