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________________ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में अलंकार २३१ इस प्रकार दर्शन, भक्ति आदि के तथ्यों के उजागर करते समय भाव बिम्बों का निर्माण हुआ है। भक्ति विवेचनावसर पर भक्ति (रति) के एक बिम्ब अवलोकनीय है। भक्तिः परेशानुभवो विरक्तिरन्यत्र चैष त्रिक एककालः। प्रपद्यमानस्य यथाश्नतःस्युस्तुष्टि: पुष्टिः क्षुदपायोऽनुघासम् ।।' यहां अमूर्त भाव, भक्ति का-~-मूर्त भोजन के ग्रास के वर्णन के द्वारा मूत्तिकरण किया गया है। प्रज्ञा बिम्ब जिन शब्दों के उच्चारण से न तो किसी इन्द्रिय में विकार उत्पन्न होता है, और न मन में, केवल मस्तिष्क में एक छाया-सी बनती है। उन्हें प्रज्ञा बिम्ब के अन्तर्गत रखा जा सकता है। कभी-कभी कवि यशअपयश, मान-अपमान आदि अमूर्त विषयों को भी मूर्त्तता प्रदान करता है, जो किसी भाव के अन्तर्गत नहीं आ सकते, केवल बुद्धि का ही विषय बनते हैं। श्रीमद्भागवत में ब्रह्म-जीव विवेक, ज्ञान-मीमांसा, यश, विजय, आदि विषयों के निरूपण प्रसंग में इस प्रकार के बिम्बों की प्राप्ति होती है। नमस्ये पुरुषं त्वाऽऽद्यमीश्वरं प्रकृतेः परम् । अलक्ष्यं सर्वभूतानामन्तबहिरवस्थितम् ॥ प्रस्तुत श्लोक में प्रतिपादित भगवान् की सर्वव्यापकता, सर्वसमर्थता का प्रतिपादन किया गया है, जो इन्द्रियग्राह्य नहीं है। केवल मस्तिष्क में हलकी छाया-सी पड़ती है। ऐसे बिम्ब उपमा, उदाहरणादि के द्वारा और स्पष्ट होते हैं --- मायाजवनिकाच्छन्नमज्ञाधोक्षजमव्ययम् । न लक्ष्यसे मूढदशा नटो नाट्यधरो यथा ॥' जैसे मूढ लोग विचित्र वेषधारी नट को नहीं देख पाते "इस उदाहरण के द्वारा प्रभु की इन्द्रियागोचरता प्रतिपादित की गई है । इन्द्रियागोचरता "प्रज्ञाबिम्ब के अंतर्गत आती है। मोक्ष, कैवल्य आदि भी प्रज्ञा के विषय बनते हैं--- १. श्रीमद्भागवत ११.२.४२ २. तत्रैव १.८.१८ ३. तत्रैव १.८.१९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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