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________________ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में अलंकार २०९ परिकर लक्षण माना है ।' मम्मट, रुय्यक, विश्वनाथ, अप्पयदीक्षित, जगन्नाथ आदि सभी परवर्ती आचार्य साभिप्राय विशेषण के साथ विशेष्य के कथन को परिकर का लक्षण मानने में एक मत हैं । साभिप्राय विशेषणों का जहां प्रयोग किया जाय वहां परिकर अलंकार होता है । भागवतकार ने अनेक स्थानों पर साभिप्राय विशेषणों के साथ विशेष्य का कथन कर चमत्कार उत्पन्न किया है। प्रत्येक स्तुति में साभिप्राय विशेषण सहित विशेष्य का प्रयोग परिलक्षित होता है। भक्त जब भक्तिभावित चित्त से प्रभु की स्तुति करने लगता है तब वह अपने प्रभु के अनेक उत्कृष्ट गुणों का वर्णन करता है। हृदय में जब प्रभु भक्ति का संचार होता है तब चित्त विकास होता है और उसी विकसित अवस्था में भक्त के पावित हृदय से अनायास ही साभिप्राय विशेषणों का प्रयोग होने लगता है। कुन्ती जब उपकृत होकर स्तुति करने लगती है तो वह कृष्ण के लिए अनेक साभिप्राय विशेषणों का प्रयोग करती है। प्रथमावस्था में कुन्ती कृष्ण को लौकिक सम्बन्ध विषयक विशेषणों से विभूषित करती है-- कृष्णाय वासुदेवाय देवकीनन्दनाय च । नन्दगोपकुमाराय गोविन्दाय नमो नमः ॥' यहां भगवान् श्रीकृष्ण (विशेष्य) के लिए वासुदेव देवकीनन्दन, नन्दगोपकुमार तथा गोविन्द आदि साभिप्राय विशेषणों का प्रयोग किया गया है । वासुदेव इस अभिप्राय से कहती है कि वे वसुदेव के पुत्र हैं । देवकी के पुत्र होने से देवकीनन्दन, नन्दगोप का पुत्र होने से नन्दगोपकुमार तथा इन्द्रियों के स्वामी होने के कारण गोविन्द पद का प्रयोग किया गया है। नमः पङ्कजनाभाय नमः पङ्कजमालिने । नमः पङ्कजनेत्राय नमस्ते पङ्कजाङघ्रये ॥ उनके नाभि से ब्रह्मा का जन्मस्थान सुन्दर कमल प्रकट हुआ इसलिए उन्हें पङ्कजनाभ, कमलों की माला धारण करते हैं इसलिए पंकजमालिन्, उनके नेत्र कमल के समान विशाल और कोमल हैं इसलिए पङ्कजनेत्र, उनके चरणों में कमल का चिह्न है इसलिए पङ्कजाङि ध्र आदि साभिप्राय विशेषणों का प्रयोग किया गया है। नमोऽकिंचनविताय निवृत्तगुणवृत्तये । आत्मारामाय शान्ताय कैवल्यपतये नमः ।। १. सरस्वतीकण्ठाभरण ४.२३५ पर श्री जगद्ध र टीका २. काव्यप्रकाश १०.११७ ३. श्रीमद्भागवत १.८.२१ ४. तत्रैव १.८.२२ ५. तत्रैव १.८.२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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