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________________ २०८ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन नमः परस्मै पुरुषाय भूयसे समुद्भवस्थाननिरोधलीलया। गृहीतशक्तित्रितयाय देहिना मन्तर्भवायानुपलक्ष्यवर्त्मने । उन पुरुषोत्तम भगवान् के चरण कमलों में कोटि-कोटि प्रणाम है जो संसार की उत्पत्ति, स्थिति एवं प्रलय की लीला करने के लिए सत्त्व, रज तथा तमोगुण रूप तीन शक्तियों को स्वीकार कर ब्रह्मा, विष्णु शंकर रूप धारण करते हैं, जो समस्त चर-अचर प्राणियों के हृदय में अन्तर्यामी रूप से विराजमान हैं, जिनका स्वरूप और उसकी उपलब्धि का मार्ग बुद्धि के विषय नहीं हैं जो स्वयं अनन्त हैं ।'' यहां सृष्टि के लिए रजोगुण, स्थिति के लिए सत्त्वगुण तथा प्रलय के लिए तमोगुण प्रधान क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु और महेश रूप तीन शक्तियों का प्रयोग किया गया है। स एष आत्मात्मवतामधीश्वरस्त्रयीमयो धर्ममयस्तपोमयः। गतव्यलोकरजशङ्करादिभिः वितर्यलिङ्गो भगवान् प्रसीदताम् ॥ वे ही भगवान् ज्ञानियों के आत्मा हैं, कर्मकाण्डियों के लिए वेदमूर्ति, धार्मिकों के लिए धर्ममूति और तपस्वियों के लिए तपःस्वरूप हैं। ब्रह्मादि बड़ेबड़े देवता भी उनके स्वरूप का चिंतन करते और आश्चर्यचकित होकर देखते रह जाते हैं। वे मुझ पर अपने अनुग्रह-प्रसाद की वर्षा करें। इसमें ज्ञानियों के लिए आत्मा, कर्मकांडियों के लिए वेदमूति धार्मिकों के लिए धर्ममूर्ति और तपस्वियों के लिए तप:मूर्ति का क्रमश: प्रयोग किया है। भागवतकार ने अनेक स्थलों पर इस अलंकार का प्रयोग किया परिकर अलंकार परिकर का स्वतन्त्र अलंकार के रूप में स्वरूप विवेचन सर्वप्रथम रूद्रट ने किया है। वस्तु का विशेष अभिप्राय से युक्त विशेषणों से विशेषित किया जाय वहां परिकर अलंकार होता है । वस्तु के चार भेद-द्रव्य, गुण, क्रिया तथा जाति के आधार पर परिकर के भी चार भेद होते हैं। कुन्तक उसे एक स्वतन्त्र अलंकार न मानकर उत्तम काव्य के प्राणभूत तत्त्व मानते हैं, क्योंकि विशेषणों का वक्रतापूर्ण प्रयोग क्रिया तथा कारक का लावण्य प्रकट, करता है । भोज ने सविस्तार परिकर का सभेद निरूपण किया है । टीकाकार जगद्धर ने साभिप्राय विशेषण के साथ विशेष्य के कथन को भोज सम्मत १. श्रीमद्भागवत २.४.१२ २. तत्रैव २.४.१९ ३. रूद्रट, काव्यालंकार ७.७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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