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________________ १९४ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन है। अलंकार वाच्योपकारक होने के कारण काव्य के शरीर हैं, पर कभी वे शरीरी भी बन जाते हैं। रससिद्ध कवि को अलंकारों के लिए आयास नहीं करना पड़ता, बल्कि जब उस कवि के हृदय के भाव अभिव्यक्ति पाने लगते है तब अलंकार परस्पर होड़ लगाकर उस अभिव्यक्ति में स्थान पाने के लिए आ जुटते हैं । आचार्य मम्मट ने अपने काव्य परिभाषा में दोषरहित एवं गुण सहित शब्दार्थ को अनिवार्य तत्त्व माना है अलंकार को नहीं । उन्होंने कहा कि गुणसहित दोषरहित अनलंकृत शब्दार्थ भी काव्य होते हैं।' स्पष्ट है कि आचार्य मम्मट ने उत्कृष्ट काव्य के लिए अदोष एवं सगुण शब्दार्थ को अनिवार्य माना है, अलंकार भी यदि रस का सहायक बनकर आये तो काव्य का सौन्दर्य और उत्कृष्ट हो जाता है। इस प्रकार अलंकार शब्दार्थ साहित्य की उत्कृष्टता के उपकारक होते हैं, उसके स्वरूपाधायक नहीं। जैसे ग्राम्य बाला भूषणों से भूषित अत्यन्त रमणीय हो जाती है उसी प्रकार प्रतिभाशाली कवियों की वाणी अलंकार से मण्डित होकर कमनीय एवं श्रवणीय हो जाती है। अतएव काव्य की उत्कृष्टता में अलंकारों का योगदान है। पूर्व में अलंकार शब्द का दो अर्थ माना गया है। प्रथम वह सौन्दर्य का पर्याय है तो द्वितीय उपमादि अलंकारों का बोधक है, जो काव्य को सुशोभित करता है। हमारा विवेच्य यही उपमादि अलंकार हैं। श्रीमद्भागवतकार ने सौन्दर्योत्पादन, अतिशय शोभाविधान, प्रभावोत्पादन, अभिव्यंजना-वैचित्य, चमत्कार संयोजन, स्पष्ट भावाववोधन, बिम्ब ग्रहणार्थ, रस उपकरण एवं संगीतात्मकता की उत्पत्ति आदि के लिए विविधालंकारों का प्रयोग किया है। श्रीमद्भागवत में शब्दालंकार एवं अर्थालंकार दोनों का प्रयोग शब्दों की चमत्कृति, अर्थों की स्वाभाविक अभिव्यक्ति रसबोध, भावों को चमत्कृत एवं सौन्दर्य चेतना को उबुद्ध करने के लिए किया गया है । स्तुतियों में अलंकार __श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में प्रयुक्त कतिपय अलंकारों का संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत करते हैं। अनुप्रास वर्गों की समानता अनुप्रास अलंकार है । स्वरों के असमान होने पर भी व्यंजनों की समानता होने पर अनुप्रास कहलाता है। छेक और वृत्ति के १. आनन्दवर्द्धन, ध्वन्यालोक, २ २. तत्रैव २ ३. मम्मट, काव्यप्रकाश, १.१ ४. काव्यप्रकाश ९.७९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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