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________________ १९२ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन ध्वनि सम्प्रदाय के आचार्यों ने वस्तुध्वनि एवं अलंकार ध्वनि की अपेक्षा रस ध्वनि को विशेष महत्त्व दिया है। अतएव ध्वनि सम्प्रदाय एवं रस सम्प्रदाय में काव्य के मौलिक स्वरूप में अधिक अन्तर नहीं है। भामह, उद्भट आदि अलंकार को काव्य-सौन्दर्य के लिए अनिवार्य धर्म मानते हैं, पर इससे विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त उपमा आदि का माधुर्य आदि गुणों के साथ सापेक्ष महत्त्व स्पष्ट नहीं हो पाता। भामह ने काव्य के अलंकार को नारी के आभूषण की तरह स्वीकृत किया है। जैसे सुन्दर स्त्री आभूषणाभाव में श्रीहीन लगती है उसी प्रकार अलंकार विहीन काव्य शोभारहित है।' भामह को कान्त सुख भी अनलंकृत होने पर मनोरम नहीं लगता, पर कालिदास जैसे सुन्दर रसज्ञ "किमिव हि मधुराणां मण्डनं नाकृतिनाम्' इत्यादि की उद्घोषणा करते हैं। भामह ने भी स्वीकार किया है कि आश्रय के सौन्दर्य से असुन्दर वस्तु भी सुन्दर बन जाती है। सुन्दर आंखों में काला अंजन भी सुन्दर लगने लगता है । __ आचार्य दण्डी ने अलंकार को व्यापक अर्थ में काव्य सौन्दर्य के हेतु के रूप में स्वीकृत किया है । दण्डी ने विशिष्ट अर्थ में उपमा आदि अलंकार को श्लेष प्रसाद आदि दस गुणों से पृथक् कर, जहां दोनों का सापेक्ष महत्त्व निर्धारित करना चाहा है, वहां अलंकार की अपेक्षा गुण पर ही उनका विशेष आग्रह जान पड़ता है । समाधि गुण को “काव्य सर्वस्व' कहकर दण्डी ने अलंकार की अपेक्षा गुण को अधिक महत्त्व दिया है । इस कथन से स्पष्ट आभाषित होता है कि दण्डी ने काव्य में रसोत्कर्ष के लिए अलंकार की अपेक्षा अग्राम्यता, माधुर्यादि गुण विशेष को ही अधिक उपकारक माना है। वामन ने अलंकार को काव्य सौन्दर्य का पर्याय मानकर सालंकार काव्य को ही ग्राह्य कहा है। उन्होंने जिस अलंकार के सद्भाव से काव्य को ग्राह्य एवं अभाव से काव्य को अग्राह्य माना, उसका अर्थ केवल अनुप्रास उपमा आदि विशिष्ट अलंकारों तक ही सीमित नहीं था प्रत्युत वह शब्द सामान्य रूप से काव्य सौन्दर्य के व्यापक अर्थ में प्रयुक्त हुआ था । वामन ने १. भामह, काव्यालंकार १.१३ २. अभिज्ञानशाकुन्तलम् १.२० ३. भामह, काव्यलंकार १.५५ ४. दण्डी, काव्यादर्श २.१ ५. तत्रैव १.१० ६. काव्यं ग्राह्यमलंकारात् । सौन्दर्यमलङ्कारः वामन काव्यालंकार सूत्रवत्ति १.१.१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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