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________________ ६. श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में अलंकार व्यावहारिक जीवन में साज-सज्जा एवं भव्य रूप सौन्दर्य के द्वारा दूसरे की धारणा को प्रभावित करने की प्रवृत्ति जनसामान्य में पायी जाती है । अपार काव्य संसार में भी काव्य की सुमधुर उक्तियों को अत्यधिक चमत्कारपूर्ण, प्रभावोत्पादक बनाने के लिए अलंकृत किया जाता है। काव्योक्तियां जनसामान्य की व्यावहारिक उक्तियों से भिन्न होती हैं। लोकोत्तर-चमत्कार-वर्णनानिपुण कवियों का कर्म काव्य ब्रह्मास्वादसहोदर तथा विलक्षण होता है। लोकव्यवहार की अनलंकृत उक्तियां अलंकृत होकर चमत्कार पूर्ण भङ्गी विशेष से कथित होने पर काव्य शब्द से अभिहित होने लगती हैं । कवि प्रतिभा से समुद्भूत उक्तियों के अलोक सिद्ध सौन्दर्य को कुछ आचार्य ने व्यापक अर्थों में अलंकार माना है।' ____संस्कृत साहित्य में अलंकार शब्द का प्रयोग दो अर्थों में प्राप्त होता है । प्रथमतः भाव में प्रत्यय होकर अलंकृति (अलम् + कृ.क्तिन्) एवं अलंकार (अलम् ++घञ्) शब्द भूषण या शोभा के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं । इस अर्थ में अलंकार सौन्दर्य से अभिन्न है। इसी अर्थ को ग्रहणकर वामन ने अलंकार को सौन्दर्य का पर्याय कहकर अलंकार युक्तकाव्य को ग्राह्य एवं अलंकाररहित काव्य को अग्राह्य कहा है। इस अर्थ में काव्य के समस्त सौन्दर्य अलंकार हैं। काव्य के वे सभी तत्त्व जो काव्य शोभा का आधान करते हैं, अलंकार के इस व्यापक अर्थ में आ जाते हैं। अलंकार शब्द का दूसरा अर्थ करण व्युत्पत्ति लभ्य है--"अलङ क्रियते अनेन इति अलङ्कारः । “वह तत्त्व जो काव्य को अलंकृत अथवा सुन्दर बनाने का साधन हो, अलंकार कहलाता है । अनुप्रास उपमादि अलंकार कहे जाते हैं । भामह तथा उद्भट ने काव्य शोभा के साधक धर्म को अलंकार मानकर गुण रस आदि को भी अलंकार की सीमा में समेट लिया है। आचार्य दण्डी ने भी काव्य के शोभाकर धर्म को अलंकार कहा है । १. सौन्दर्यमलङ्कारः-वामन, काव्यालंकारसूत्रवृत्ति १.१.२ २. काव्य ग्राह्यमलंकारात्-तत्रैव १.१.१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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