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________________ १८८ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों की समीक्षात्मक अध्ययन वाणी भगवान् की किशोरादि अवस्थाएं, वंशी और शुंग की ध्वनि, मधुरगायन, शरीर की दिव्य सुगन्धि, आभूषणों की झनकार, चरणचिह्न, श्रीकृष्ण का प्रसाद, मयूरपिच्छ, गुंजा, गोधूलि, गोवर्द्धन, यमुना, कदम्ब, रासस्थली, वृन्दावन, भौंरे, हरिन, सुगन्धित हवाएं, पशु-पक्षी आदि मधुर भक्तिरस के आलम्बन विभाव हैं । अनुभाव तीन प्रकार के होते हैं-- अलंकार, उद्भास्वर और वाचिक । भाव, हाव, हेला——ये तीन शारीरिक, शोभा, कान्ति, दीप्ति, माधुर्य, प्रगल्भता, औदार्य, धैर्य - ये सात बिना प्रयास के होने वाले तथा लीला, विलास, विच्छित्ति, विभ्रम आदि दस स्वाभाविक - ये बीस लंकार कहे जाते हैं । वस्त्रगिरना, बाल खुलना, अङ्ग टूटना एवं दीर्घश्वास लेना ये उद्भास्वर अनुभाव हैं । आलाप, विलाप, संलाप, प्रलापादि १२ प्रकार के वाचिक अनुभाव होते हैं । इनके अतिरिक्त मौग्ध्य और चकित नाम के दो अनुभाव और भी होते हैं । इसमें स्तम्भ, स्वेद, रोमांच, स्वरभङ्ग कम्प, विवर्णता अश्रुपातादि सभी प्रकार के सात्त्विक भाव उत्पन्न होते हैं । ये अपनी अभिव्यक्ति के तारतम्य से धुमायित, प्रज्वलित, दीप्त, उद्दीप्त, और सुदीप्त पांच प्रकार के होते हैं । यद्यपि सभी रसों में सात्त्विक भावों का उदय होता है लेकिन उनकी पूर्ण रूप से अभिव्यंजना मधुर रस में ही होती है । आलस्य और उग्रता को छोड़कर निर्वेदादि तीसों संचारीभाव मधुररस के होते हैं। इन्हीं विभाव, अनुभाव तथा संचारीकों की सहायता मधुरारति मधुरभक्तिरस के रूप में अभिव्यक्त हो जाती है । भागवतीय भक्तों की अनेक स्तुतियों में मधुररस की मधुर अभिव्यंजना हुई है । पितामह भीष्म मधुरेश्वर श्रीकृष्ण के सौन्दर्य का सुन्दर वर्णन किया है -- त्रिभुवनकमनं तमालवणं रविकर गौरवाम्बरं दधाने । वपुरलककुलावृताननाब्जं विजयसखे रतिरस्तु मेऽनवद्या ॥ जिनका शरीर त्रिभुवन सुन्दर एवं श्याम ताल की तरह सांवला है, जिस पर सूर्य रश्मियों की तरह श्रेष्ठ पीताम्बर लहराता है और कमल सदृश मुख पर घुंघराली अलकें लटकती रहती हैं, उन अर्जुन सखा श्रीकृष्ण में मेरी निष्कपट प्रीति हो । यहां त्रैलोक्य सुन्दर श्रीकृष्ण आलम्बन हैं । त्रिभुवन कमन रूप, पीताम्बर, घूंघराले बाल इत्यादि उद्दीपन विभाव हैं । उनके द्वारा पूर्वकृत १. भक्तिरसामृत सिन्धु - पश्चिम विभाग ५.६ २. श्रीमद्भागवत १.९.३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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