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________________ १४२ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन का वर्णन मिलता है। परब्रह्मपरमेश्वर, लोकरंजक श्रीकृष्ण, भक्तरक्षक, बालक श्रीकृष्ण , गोपीपति, दुष्टों का संहारक, दलितों का उद्धारक आदि रूप चित्रित किए गये हैं। १. अवतार भगवान् श्रीकृष्ण भागवत के पद-पद में व्याप्त हैं। श्रीमद्भागतक्षीर-सागर है और भगवान् श्रीकृष्ण उसके अक्षर-अक्षर में विराजमान हैं -तिरोधाय प्रविष्टोऽयं श्रीमद्भागवतार्णवम् । श्रीमद्भागवत में भगवान् के विस्तृत स्वरूप का वर्णन किया गया है । सभी कलाओं के साथ कृष्णावतार होता है अन्ये चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् । जब धरती पर अधर्म का प्रसार हो जाता है। खल, राक्षस, सर्वत्र सर्वगामी होकर जीव जगत् को संकट में डाल देते हैं तब भूमिभारापहरणार्थ धर्मरक्षणार्थ, खल निग्रहार्थ भक्तोद्धारार्थ भगवान् का अवतार होता है।' जब संसार कंसादिराक्षसों से त्रस्त था, भूत मात्र का कोई शरण्य नहीं था, धर्म, पुण्य, तप, स्वाध्याय, ध्यानादि विलुप्तप्राय हो गये थे, पापाचारियों के भार से पृथिवी संत्रस्त थी। तभी ऐसे संक्रमण काल में भगवान् का प्रादुर्भाव होता है दिष्ट्या हरेऽस्या भवतः पदो भुवो भारोऽपनीतस्तव जन्मनेशितुः।' त्वं पासि नस्त्रिभुवनं च यथाधुनेश ___ भारं भुवो हर यदूत्तम वन्दनं ते ॥ दिष्टयाम्ब ते कुक्षिगतः परः पुमानंशेन साक्षाद् भगवान् भवाय नः । मा भूद् भयं भोजपतेर्मुमूर्षोर्गोप्ता यदूनां भविता तवात्मजः ॥ इस प्रकार भगवान् विष्णु के पूर्णाश के रूप में भक्तों के उद्धार के लिए श्रीकृष्ण का अवतार होता है । बालस्वरूप बालक श्रीकृष्ण अत्यन्त सुन्दर, कमनीय एवं मनोहर स्वभाव वाले हैं । उनके नेत्र कमल कोमल और विशाल हैं। शंख, चक्र, गदा और कमल १. श्रीमद्भागवत महापुराण २. तत्रैव १.३.२८ ३. तत्रैव १०.४०.१८ ४. तत्रैव १०.२.३८ ५. तत्रैव १०.२.४० ६. तत्रैव १०.२.४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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