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________________ १४१ दार्शनिक एवं धार्मिक दृष्टियां पर स्तुति करते हैं । उन स्तुतियों में उनके उपास्य का स्पष्ट चरित -स्वरूप उभर कर सामने आता है। लगभग २२ देवों एवं भगवान् के अवतारों की स्तुतियों की गई है यथा-परात्पर ब्रह्मा, विष्णु, कृष्ण, शिव, राम, कूर्म, नृसिंह, कपिल, वाराह, नर-नारायण, सुदर्शन, अग्नि, सूर्य, चन्द्र, जलदेवता, त्रिदेव, पृथु, हयग्रीव मत्स्य, बलराम (संकर्षण) जडभरत आदि । प्रस्तुत संदर्भ में सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न स्वरूपों पर विचार किया जायेगा । भागवतकार परात्परब्रह्म और श्रीकृष्ण में एकरूपता स्थापित करते हैं और भगवान् श्रीकृष्ण ही श्रीमद्भागवत के प्रतिपाद्य हैं। वास्तव में भागवत श्रीकृष्ण ही है । अत: भागवत में श्रीकृष्ण के चरित के विभिन्न पक्षों का सुविस्तृत वर्णन मिलता है। श्रीकृष्ण 'कृषति निजसमीपमाकर्षति वेणुरवेणेति कृष्णो यशोदानन्दनः' अर्थात् वेणुनिनादन के द्वारा भक्तजनों को अपने समीपाकर्षण करने वाले यशोदानन्दन कृष्ण हैं। वे अपने जनों का भवोच्छेदक सदानन्द रूप एवं भक्तोषविनाशक हैं। कृष्ण में कृष शब्द भू-सत्ता वाचक है और "ग' निवृत्ति वाचक है। इन दोनों का मिला हुआ अर्थ कि सर्वव्यापक आनन्दमय विष्णु ही सात्वत कृष्ण हैं कृषिवाचकशब्दो णश्च निवृति वाचकः । तयोरंक्य परब्रह्म कृष्ण इत्यभिधीयते ॥' कोटिजन्मकृत पाप को कृष् कहते हैं । उसके विनाशक देवता कृष्ण हैं कोटिजन्मकृतं पापं कृषिरित्युच्यते बुधैः। तन्नाशकरो देवः कृष्ण इत्यभिधीयते ॥ स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण के शब्दों में कृषामि मेदिनों पार्थ भूत्वा काष्र्णायसो महान् । कृष्णो वर्णश्च मे यस्मात् तस्मात् कृष्णोऽहमर्जुन ॥५ इस प्रकार पापौघविनाशक आनन्दस्वरूप, केवलानन्द कृष्ण पद का वाच्यार्थ हुआ। श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में श्रीकृष्ण के सभी रूपों १. श्रीमद्भागवत , वंशीधरी टीका, पृ० सं०८ २. तत्रव, पृ० ८ ३. गोपालपूर्वतापनीयोपनिषद् १-१ ४. श्रीमद्भागवत, वंशीधरी टीका, पृ० ८ ५. श्रीमद्भागवत १.८.९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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