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________________ ११४ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन लगे-प्रभो, मेरा शरीर धारण करना आज सफल हो गया। आज मुझे संपूर्ण पुरुषार्थ प्राप्त हो गया, क्योंकि आज आपकी चरणों की सेवा का सुअवसर प्राप्त हुआ है। भगवन् ! जिन्हें भी आपके चरण-कमलों की सेवा का सुअवसर मिला है, वे सद्यः भवसागर से पार हो गये। आप भक्तों के भगवान, वेदान्तियों के ब्रह्म तथा योगियों के परमात्मा हैं । आपको नमस्कार है । हम मूढ़ दास पर कृपा कीजिए।' वेणुरव सुनकर गोपियां यथापूर्व स्थिति में ही निशीथ में भगवान् कृष्ण के पास उपस्थित हो गयी। भगवान् कृष्ण अपने पूर्वगृह में लौटने के लिए गोपियों को समझाने लगे । गोपियां कब मानने वाली थीं? आंसुओं की सरिता गोपियों की आंखों से प्रवाहित होने लगी। वे आर्त भाव से पुकार उठी-भगवन् ! आपको छोड़कर हम कहां जाएं ? मैवं विभोऽर्हति भवान् गदितुं नृशंसं संत्यज्य सर्वविषयांस्तव पादमूलम् । भक्ता भजस्व दुरवग्रह मात्यजास्मान् देवो यथाऽऽदिपुरुषो भजते मुमुक्षुन ॥ आर्त भाव से गोपियां ११ श्लोकों में प्रभु की स्तुति करती हैं।' भगवान श्रीकृष्ण अन्तर्धान हो गये । गोपियां अपने प्राण बल्लभ की गवेषणा करती चलती हैं । अन्त में यमुनाजी के पावन पुलिन-रमणरेती में लौटकर बड़ी उत्कण्ठापूर्वक प्रभु की प्रतीक्षा करती हुई आपस में उनका गुणगान करने लगी। यही स्तुति आज भक्ति संसार में “गोपीगीत" के नाम से प्रसिद्ध है । कुन्ती की तरह ही गोपियां भी प्रभु के उपकारों को याद करती हैं --हे प्रभो, आपने बार-बार रक्षा की है । हे नाथ ! प्रत्यक्ष होवो । तुम हम लोगों का उद्धार करो। पुरुषशिरोमणे ! कहां तक गिनाएं, आप हमेशा हम लोगों की रक्षा करते आये हैं ..... विषजलाप्ययाद् व्यालराक्षसाद् वर्षमारुताद् वैद्युतानलात् । वृषमयात्मजाद विश्वतोभयादृषभ ते वयं रक्षिता मुहुः ॥" अन्त में गोपियां अपना शरीर, मन तथा इन्द्रियों को भगवान में समपित कर उन्हीं की हो जाती है। श्रीकृष्ण के चरण-स्पर्श से अजगर योनि से मुक्त होने पर सुदर्शन १. श्रीमद्भागवत १०।२८।५-८ २. तत्रैव १०।२९।३१ ३. तत्रैव १०।२२।३१-४१ ४. तत्रैव १०।११।१-१९ ५. तत्रैव १०।३१।३ ६. तत्रैव १०॥३१११९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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