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________________ १०२ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन तन्नः प्रभो त्वं ककलेवरापितां त्वन्माययाहं ममतामधोक्षज । भिन्द्याम येनाशु वयं सुदुभिदां विधेहियोगत्वयि नः स्वभावमिति।' बीसवें अध्याय में एक श्लोकात्मक पांच स्तुतियां हैं। सूर्य स्तुति, चन्द्रस्तुति, अग्नि स्तुति, वायु स्तुति, ब्रह्ममूर्ति स्तुति आदि स्तुतियां विभिन्न द्विपों के निवासियों द्वारा की गई हैं। इस स्कन्ध की अन्तिम स्तुति भगवान् संकर्षण को समर्पित की गई है। तुम्बुरु गन्धर्व के साथ महाभागवत नारद जी भगवान् संकर्षण के गुणों का ब्रह्मा जी की सभा में गायन करते हैं। इस पांच श्लोकात्मक स्तुति में भगवान् संकर्षण के अद्भुत स्वरूप का प्रतिपादन किया गया है। पृथिवी के धारण कर्ता के रूप में उनका प्रतिपादन हुआ है --- एवम्प्रभावो भगवाननन्तो दुरन्तवीर्योरुगुणानुभावः । मूले रसायाः स्थित आत्मतन्त्रो यो लीलया क्ष्मां स्थितये बिति ॥' षष्ठत्कन्ध में समाहित स्तुतियों का वस्तु विश्लेषण षष्ठ स्कन्ध में ८ स्तुतियां विभिन्न भक्तों द्वारा विभिन्न अवसरों पर अपने स्तव्य के चरणों में समर्पित की गई है। जिनमें "हंसगुह्यस्तोत्र" और नारायणकवच विश्रुत है । जब दक्ष प्रजापति द्वारा की गई सृष्टि में कोई वृद्धि नहीं हो रही थी तब विन्ध्याचल पर्वत पर अवस्थित अघमर्षण तीर्थ में स्नान कर प्रजा वृद्धि की कामना से प्रजापति दक्ष ने हंसगुह्य नामक स्तोत्र से इन्द्रियातीत भगवान् की स्तुति की। दक्ष प्रजापति कहते हैं--- भगवन ! आपकी अनुभूति, आपकी वितशक्ति अमोघ है। आप जीव और प्रकृति से परे, उनके नियन्ता और उन्हें सत्ता-स्फूर्ति देने वाले हैं। जिन जीवों ने त्रिगुणमयी सृष्टि को ही वास्तविक समझ रखा है वे आपके स्वरूप का साक्षात्कार नहीं कर सके हैं, क्योंकि आप तक किसी भी प्रमाण की पहुंच नहीं है --आपकी कोई अवधि, कोई सीमा नहीं। आप स्वयं प्रकाश और परात्पर हैं, मैं आपको नमस्कार करता हूं। प्रलय काल में भी आप अपने सच्चिदानन्दमयी स्वरूप स्थिति के द्वारा प्रकाशित होते रहते हैं। यदोपारमो मनसो नामरूप, रूपस्य दृष्टस्मृतिसम्प्रमोषात् । य ईयते केवलया स्वसंस्थया, हंसाय तस्मैशुचिसद्मने नमः ॥ श्रीमद्भागवत के षष्ठ स्कन्ध के आठवें अध्याय में सभी प्रकार के १. श्रीमद्भागवत ५।१९।१५ २. तत्रैव श२५।१३ ३. तत्र व ६।४।२३-३४ ४. तत्रैव ६।४।२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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