SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भागवत की स्तुतियां : स्रोत, वर्गीकरण एवं वस्तु विश्लेषण १०१ भजे भजन्यारणपादपङ्कजं, भगस्य कृत्स्नस्य परं परायणम् । भक्तेष्वलं भावित भूतभावनं भवापहं त्वा भवभावमीश्वरम् ।।' अठारहवें अध्याय मे विभिन्न भक्तों द्वारा विष्णु के विभिन्न अवतारों की स्तुति की गई है । भद्राश्ववर्ष में भद्रश्रवा हयग्रीव की (२॥६) हरिवर्ष में भक्त प्रह्लाद भगवान् नृसिंह की (८।१४) और केतुमाल वर्ष में लक्ष्मीजी सुदर्शन धारी प्रभु की स्तुति (१८-२३) करती हैं। रम्यक वर्ष में महाराज मनु मत्स्यावतार की (२५-२८) हिरण्यमय वर्ष में पितृराज अर्यमा भगवान् कच्छप की (३०-३३) उत्तर कुरुवर्ष में वहां के निवासियों सहित पृथिवी वाराहावतार की (३५-२०) स्तुति करती है। यज्ञपुरुष वाराहमूर्ति की स्तुति करती हुई पृथिवी कहती है-आप जगत् के कारणभूत आदि सूकर हैं, आपने ही राक्षस से मेरी रक्षा की है----- प्रमथ्य दैत्यं प्रतिवारणं मृधे यो मां रसाया जगदादिसूकरः। कृत्वाग्रदंष्ट्र निरगादुदन्वतः क्रीडन्निवेभः प्रणतास्मि तं विभुमिति ॥ उन्नीसवें अध्याय में तीन स्तुतियां है--किम्पुरुष वर्ष में स्थित भक्त राज हनुमान जी सीताभिराम श्रीराम की एवं भारत वर्ष में महर्षि नारद नर-नारायण की स्तुति करते हैं। देवता लोग भारत की महिमा का गायन करते हैं अहो अमीषां किमकारि शोभनं प्रसन्न एषां स्विदूत स्वयं हरिः । यैर्जन्मलब्ध नृषु भारताजिरे मुकुन्दसेवौपयिकं स्पृहा हि नः ॥' - देवगण कहते हैं-यह स्वर्ग तो क्या-- जहां के निवासियों की एकएक कल्प की आयु होती है, किन्तु जहां से फिर संसार चक्र में लौटना पड़ता है, उन ब्रह्मलोकादि की अपेक्षा भी भारतभूमि में थोड़ी आयु वाले होकर जन्म लेना अच्छा है, क्योंकि यहां धीर पुरुष एक क्षण में ही अपने इस मर्त्य शरीर से किए हुए सम्पूर्ण कर्म श्री भगवान् को अर्पण करके उनका अभयपद प्राप्त कर सकता है। ब्रह्मर्षि नारद भगवान् नर नारायण की स्तुति करते हुए कहते हैं -- जो विश्व का कर्ता होकर भी कर्तृत्व के अभिमान में नहीं बंधते, शरीर में रहते हुए भी उसके धर्म-भूख प्यास के वशीभूत नहीं होते, द्रष्टा होने पर भी जिनकी दृष्टि दृश्य के गुण दोषों से दूषित नहीं होती, अन्य असङ्ग एवं विशुद्ध साक्षि-स्वरूप भगवान् नर-नारायण को नमस्कार है। और अन्त में माया भंजिका भक्ति की कामना करते हैं१. श्रीमद्भागवत ५।१७।१८ २. तत्रैव ५।१८।३९ ३. तत्रैव ५।१९।२१ ४. तत्रैव ५।१९।२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy