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________________ महानिशीथ की परीक्षा महानिशीथ का नामोल्लेख नन्दीसूत्र और पाक्षिक सूत्रान्तर्गत आगम-नामावली में हुआ है, सर्वत्र दशा, कल्प, व्यवहार, निशीथ, महानिशीथ इस क्रम से “महानिशीथ' का नाम छेद सूत्रों में निशीथ के बाद आता है। हमारे पास एक ताडपत्र पर लिखे गए प्राचीन पुस्तकभंडार की ताडपत्रीय सूची है, जिसमें महानिशीथ की कनिष्ठ, मध्यम, उत्कृष्ट भेद से तीन वाचनाओं का निरूपण किया है, कनिष्ठ वाचना में ३४००, मध्यम वाचना में ४२०० और उत्कृष्ट वाचना में ४५०० परिमित श्लोक संख्या लिखी है, परन्तु आजकल विद्यमान जितने भी महानिशीथ के पुस्तक देखे उन सभी में सूत्र का श्लोक परिमाण ४५०० लिखा मिलता है, किसी में ४५४४ श्लोक भी बताये हैं, परन्तु लघु-मध्यम-वाचनात्मक पुस्तक अथवा उनका परिमाण लिखा नहीं मिला । वास्तव में वर्तमान महानिशीथ सूत्र एक भेदी कृति है, इस कृति के उद्धारक प्रसिद्ध आचार्य श्रीहरिभद्रसूरि माने जाते हैं और इस उद्धृतसूत्र का सिद्धसेन दिवाकर, वृद्धवादी, यक्षसेन, देवगुप्त, यशोवर्धन क्षमाश्रमण शिष्य रविगुप्त, नेमिचन्द्र, जिनदासगणि क्षपक, सत्यश्री प्रमुख युगप्रधान श्रुतधरों द्वारा समर्थन कराया है, जो संदेहास्पद है, क्योंकि जिन (श्रुतधरों) द्वारा इसको प्रमाणित करने की बात कही गई है वे श्रुतधर समकालीन नहीं थे, वृद्धवादी और सिद्धसेन दिवाकर हरिभद्रसूरि से ३०० वर्ष पहले के व्यक्ति थे, जो हरिभद्रसूरि की कृति का समर्थन नहीं कर सकते थे, यक्षसेन, रविगुप्त, देवगुप्त अप्रसिद्ध नाम हैं, हरिभद्र के समय में अथवा कुछ परवर्ती काल में उक्त नाम के आचार्यों के अस्तित्व का इतिहास से समर्थन नहीं होता, ऊकेशगच्छ में प्रति चौथे आचार्य का नाम “देवगुप्त सूरि" दिया जाता था, परन्तु इस प्रकार के नामों के निर्देशमात्र से किसी के समय का निर्णय नहीं हो सकता, नेमिचन्द्र और जिनदासगणि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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