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________________ ८५ कुशीलादि कुगुरुत्रों के लक्षण"से भयवं केरिसं तेसिं, कुसीलादीण लक्खणं । सम्मं विनाय जेणं तु, सव्यहा ते विवज्जए । गोयमा! सामन्नो तेसि,लक्खणमेयं निबोधय । जं नच्चा तेसिं संसग्गी, सव्वहा परिवज्जए । कुसीले ताव दुसयहा उ, वोच्छं ते ताव गोयमा । कुसीले जेसि संसग्गी-दोसेणंभस्स दे मुणी खणा ।। अर्थात्-'भगवान् ! कुशील आदिका लक्षण कैसा होता है, जिसको अच्छी तरह समझ कर उन के संसर्ग को सर्व प्रकार से छोड़ दे। भगवान ने कहा - कुशील दो सौ प्रकार के होते हैं, अवसन्न दो प्रकार के जानो, ज्ञान आदि से पार्श्वस्थ होते हैं और शबल बाईस प्रकार के होते हैं। इनमें दो सौ प्रकार के कुशील हैं उनके संसर्गदोष से मुनि क्षण भर में मार्ग से भ्रष्ट हो जाता है। कुशील संक्षेप में दो प्रकार के होते हैं, वे इस प्रकार "तत्थ कुसील ताव समासो दुविहे णेए-परंपरकुसीले, अपरंपरकुसीले, तेवि उ दुविहे णेए-सत्तह गुरु परंपरकुसीले, एग दुतिगुरुपरंपरकुसीले य । जे विय ते अपरंपरकुसीले ते विउ दुविहे णेये आगमो -णो-आगमत्रो। तत्थ अागमो गुरुपरंपरएणं आवलिआए ण केई कुसीले आसी, ते चेव कुसीले भवंति णो आगमत्रो अणगविहा तंजहा-नाणकुसीले, दंसणकुसीले, चारित्त कुसीले तबकुसीले वीरियकुसीले। तत्थ जे से नाणकुसीले से णं तिविहे नेए पसत्थापसत्थनाण कुसीले अपसत्थनाण कुसीले सुपसत्थनाण कुसीले, तत्थ जे से पसत्थापसत्थ नाणकुसीले से दुविहे नेए-आगमओ नो आगमत्रो य, तत्थ आगमो विहंगनाणी, पन्नविय पसत्थापसत्थणवत्थजालअज्झयणज्मावणा कुसीले, नो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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