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________________ परिशिष्ट २ ३२७ जीवन का नैतिकस्तर और सत्साहित्य १६ मई ७३ जीवन का मूल्य आंको जन० १५ जून ४९ जीवन का मूल्य बदलें संयम अंक ५८ जीवन का सत्य-पक्ष डगमगा उठा है १ जुलाई ५७ जीवन के मूल्य बदलकर आत्मशुद्धि की ओर बढ़ना ही विवेक की उपयोगिता है १५ जुलाई ५६ जीवन-परिमार्जन का मार्ग : प्रेक्षा मई-जून ७९ जीवन में सत्य-निष्ठा, संतोष व अशोषण जैसी सद्वृत्तियां संजोनी हैं १५ मार्च ५६ जीवन में सादगी ही वास्तविक सुधार है जन० २३ जून ४९ जीवन में हमें आचरण की प्रतिष्ठा करनी है १५ अग० ५६ जीवन व्यवहार में अणुव्रतों की उपयोगिता १५ अग० ६० जो क्रोधदर्शी है, वह मानदर्शी है जन० ७ मार्च ४९ जो रागदर्शी है, वह द्वेषदर्शी है जन० २८ फर० ४९ जो शाश्वत है, वही धर्म है १ सित० ८२ ज्ञानी और पडितों की नहीं, क्रियाशील व्यक्तियों की आवश्यकता है १५ फर० ५६ झूठी प्रतिष्ठा की बीमारी ने आज सब कुछ खोखला कर दिया है १५ फर० ५८ तीन मौलिक धाराओं का दिग्दर्शन १६ अप्रैल ८४ तीर्थंकर महावीर का अनेकांत और स्याद्वाद दर्शन ___ अप्रैल ७८ तृप्ति का पथ १ अक्टू० ५९ तो दृढ़ संकल्प करना होगा १५ मार्च ५९ थोड़ा गहराई से सोचें १ दिस० ५८ दबाव या अहसान नहीं होना चाहिए १ नव० ५६ दिशाबोध १ मार्च ७३ दुःख से प्रताड़ित मानव समाज जन० १३ सित० ४८ दूसरों के सुखों को लूटनेवाला भला कैसे सुखी बन सकता है ? १५ अप्रैल ५६ दृढ़धर्मिणी श्राविका भूरी बाई १ अग० ७० दृष्टिकोण को बदले बिना कोई भी समस्या हल नहीं होगी १ दिस० ५६ देश की सीमा से पार अणुव्रत की अपेक्षा १६ जुलाई ७६ देश में चरित्र का भयंकर अकाल १ मई ६७ देश में धर्म क्रांति की आवश्यकता है २२ मार्च ८१ दोनों के लिये १५ जन० ५८ धर्म १५ मई ५९ धर्म अवनति का कारण नहीं जन० १५ नव० ४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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