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________________ योगसाधना नए द्वार का उद्घाटन ' साधना की आयोजना वैयक्तिक साधना का अधिकारी आदर्श साधक कौन ! दो प्रकार के साधक * स्थितात्मा : अस्थितात्मा आत्मोदय होता है आस्था, ज्ञान और पुरुषार्थ से मौन से होता है ऊर्जा का संचय सबल कौन ? ६ आत्मानुभव की प्रक्रिया श्रेय और प्रेय वृत्तियों का शोषण : विचारों का पोषण आत्मसाक्षात्कार की दिशा वर्तमान में जीना चैतन्य विकास की प्रक्रिया आगे की सुधि लेइ जीवन विकास के क्रम अकर्म से निकला हुआ कर्म आत्मदर्शन का पथ' साधना की सफलता का रहस्य उपासक संघ : एक नया प्रयोग अस्तित्व की जिज्ञासा जागो ! निद्रा त्यागो' जागरूकता से बढ़ती है संभावनाएं प्रारम्भ सरस, अन्त विरस " चार" १. १८-६-७८ नोखामण्डी । २. १७ - ३-७७ लाडनूं । ३. ३०-१२-५४ थाना । ४. २-४-७९ दिल्ली । ५. २४-३-७९ दिल्ली (महरौली) । ६. २६-५-७६ पडिहारा । Jain Education International सोचो ! ३ वि. वीथी मंजिल १ भोर प्रवचन १० प्रवचन १० राज खोए खोए खोए वि वीथी लघुता लघुता मुक्ति: इसी / मंजिल २८०/५६ मुक्ति: इसी आगे प्रवचन ११ खोए प्रवचन १० आगे बूंद बूंद प्रेक्षा जागो ! लघुता बूंद बूंद १ धर्म : एक १२९ २६३ ६८ ११४ २०० १९१ १७५ २०० २१५ For Private & Personal Use Only २२२ ૪ १३७ ६८ १०३ २५ २५१ २०१ १२८ १२६ ६४ १९४ ५५ ७५ १७३ २२८ २४१ ७. १०-५-६६ सूरतगढ़ । ८. १२-२-७९ रतनगढ़ । ९. १-१०-६५ दिल्ली । १०. १-७-६५ दिल्ली (ग्रीनपार्क ) । ११. मृगसिर कृष्णा २, २०२३ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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