SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 274
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३० आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण प्रेक्षाध्यान: प्राणविज्ञान प्रेक्षाध्यान के स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए "जीवन विज्ञान ग्रंथ माला" की शृंखला में अनेक पुष्प प्रकाशित हुए हैं। उन्हीं पुष्पों में एक पुष्प है - 'प्रेक्षाध्यान : प्राणविज्ञान' । इसमें प्राणशक्ति का महत्त्व तथा उसको जगाने के विविध प्रयोगों की चर्चा हुई है । आकार में लघु होते हुए भी यह पुस्तिका अनेक नए रहस्यों को प्रकट करने वाली है । बीति ताहि विसारि दे आचार्य तुलसी की यह उदग्र आकांक्षा है कि संसार को अध्यात्म का एक ऐसा आलोक मिले, जिससे संपूर्ण मानव जाति आलोकित हो उठे । आज हर व्यक्ति अतीत के झूले में झूल रहा है। इसका फलित है - तनाव | मानव को इस दुविधा से मुक्त करने के लिए 'बीति ताहि विसारि दे' पुस्तक अनुपम पाथेय बन कर सामने आई है। जिनका अथक श्रम इस पुस्तक के संपादन में लगा है, वे महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी पुस्तक की प्रस्तुति में कहती हैं 'बीति ताहि विसारि दे' आचार्यश्री द्वारा समय-समय पर प्रदत्त और लिखित प्रवचनों एवं निबंधों का संकलन है । इसमें युवकों और महिलाओं के सम्बन्ध में जो सामग्री है, वह सोद्देश्य तैयार की गयी है । यह युवापीढ़ी को दिशाबोध देने वाली है और महिला जाति को उसकी अस्मिता की पहचान करवाकर उसके पुरुषार्थ की लो को प्रज्वलित करने वाली है" परिश्रम के पसीने से पनपी धान की सुनहरी बाली जितनी मोहक होती है, उतनी ही मोहक है आचार्यश्री की यह कृति, जिसमें नैतिक और आध्यात्मिक विचारों का अखूट पाथेय भरा पड़ा है ।" इसमें योगसाधना, धर्म, भगवान् महावीर, युवक, नारी आदि अनेक विषयों पर मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी प्रस्तुति हुई है । ३८ आलेखों से संयुक्त यह कृति सत्य का साक्षात्कार कराने तथा महान् बनने की दिशा में एक अनुपम प्रेरणा - पाथेय है । बूंद-बूंद से घट भरे, भाग- - १,२ आज के वैज्ञानिक युग में वक्ताओं की कमी नहीं है, पर प्रवचनकार दुर्लभ हैं । आचार्य तुलसी धर्माचार्य हैं, पर रूढ़ प्रवक्ता नहीं । उनके प्रवचन में धर्म, दर्शन, विज्ञान, समाज, राजनीति एवं मनोविज्ञान आदि अनेक विषयों का समावेश होता है । सन् ६० में 'प्रवचन डायरी' के प्रकाशन के बाद प्रवचन - साहित्य की प्रथम कड़ी 'बूंद-बूंद से घट भरे' भाग १ और २ प्रकाश में आईं। इन इन पुस्तकों में सन् ६५ और ६६ के प्रवचनों का संकलन है । प्रवचनों में विषयों की विविधता है पर लक्ष्य एक ही है कि व्यक्ति की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy