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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन २२९ प्रति भी सावधान रहते हैं । निःसंदेह प्रवचन-साहित्य की यह लम्बी शृंखला हर घर में ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित कर 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' का संदेश देती है। प्रवचन साहित्य की यह लम्बी शृंखला जीवन की विसंगतियों को दूर करके व्यक्ति-चेतना को जगाने में महत्त्वपूर्ण कड़ी का कार्य करेगी। ऐसा विश्वास है। प्रश्न और समाधान प्रश्नोत्तरों के माध्यम से दिया गया बोध पाठक के लिए अधिक सहज एवं हृदयग्राही होता है। 'प्रश्न और समाधान' पुस्तक में जिज्ञासा करने वाले हैं ---मुनिश्री सुखलालजी तथा समाधानकर्ता हैं-आचार्य तुलसी । इसमें प्रश्नोत्तरों के माध्यम से अहिंसा, सत्य आदि व्रतों का स्वरूप विश्लेषित हुआ है। लगभग प्रश्न अणुव्रत आंदोलन के नियमों को व्याख्यायित करते यह कृति साम्प्रदायिक मनोभूमिका से दूर हटकर घृणा, हिंसा आदि के दलदल से उबार कर मानव जाति को अखण्ड आत्मविश्वास और मंत्री के साम्राज्य में ले जाती है। इस पुस्तक में समाज के सच्चे चित्र को उकेरकर समष्टिगत चेतना को जगाने के उपाय निर्दिष्ट हैं। . प्रेक्षा : अनुप्रेक्षा प्रेक्षा अपने द्वारा अपने को देखने की ध्यान की विशिष्ट पद्धति है। यह अशांत विश्व को शांति की राह बताने का महान् उपक्रम है। प्रेक्षा की प्राथमिक जानकारी देने हेतु आचार्य तुलसी ने 'प्रेक्षासंगान' की संरचना की, जिसमें ३०० पद्यों के माध्यम से प्रेक्षाध्यान की विधि, स्वरूप तथा महत्त्व को स्पष्ट किया है। इन पद्यों पर प्रश्नोत्तरों के माध्यम से व्याख्या लिखी गई, वही 'प्रेक्षाः अनुप्रेक्षा' पुस्तक के रूप में रूपायित हुई है । इसमें लगभग ५१ आलेखों में प्रेक्षाध्यान के उद्भव का इतिहास, उसका आधार लेश्याध्यान आदि का विस्तार से वर्णन है तथा अन्त में 'पुलिस अकादमी', जयपुर में हुए कुछ प्रवचनों का संकलन है। पूरी पुस्तक प्रेक्षाध्यान की परिक्रमा करते हुए चलती है । प्रश्नोत्तरों का क्रम भी सरल एवं सुबोध है । 'प्रेक्षासंगान' के पद्यों की अनुप्रेक्षा करते समय ऐसा महसूस होता है, मानो गागर में सागर भर दिया गया हो।। प्रस्तुत कृति अस्तित्व को समझने का नया दृष्टिकोण प्रस्तुत कर आत्मशक्ति को जगाने के सूत्रों को व्याख्यायित करती है। साथ ही यह आज के परिवेश में व्याप्त तनाव, अशांति एवं कुण्ठा की सलवटों को दूर करने तथा भौनिक एवं पदार्थवादी मनोवृत्ति के अन्धकार को प्रकाश में रूपान्तरित करने का एक रचनात्मक, सृजनात्मक एवं प्रायोगिक उपक्रम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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