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________________ २०२ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण स्थापनाओं का प्रस्तुतीकरण इस ग्रन्थ में हुआ है। इस पुस्तक में अनेक संदर्भ ग्रन्थों का भी उपयोग हुआ है। अतः शोध विद्यार्थियों के लिए यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी है। अतीत का विसर्जन : अनागत का स्वागत तनावमुक्त, सार्थक एवं सफल जीवन का सूत्र है-अतीत की स्मृति एवं भविष्य की कल्पना से मुक्त होकर वर्तमान में जीना। आचार्य तुलसी ने इस सूत्र को प्रायोगिक रूप में अपने जीवन में उतारा है। इस सूत्र को जनता तक पहुंचाने के विशेष उद्देश्य से लिखे गये निबंधों का संकलन है-'अतीत का विसर्जन : अनागत का स्वागत' । इस पुस्तक में एक ओर युवापीढ़ी को जैन दर्शन व संस्कृति से परिचित कराया गया है तो दूसरी ओर अहिंसा के विविध रूपों को भी मौलिक सोच के साथ प्रस्तुत किया गया है । इसमें भारतीय बुद्धिजीवी वर्ग को जहां रचनात्मक दिशा में अग्रसर होने की प्रेरणा है तो वहां समाज एवं राष्ट्र की चेतना को झकझोरने का सफल एवं सार्थक प्रयत्न भी है। _ प्रस्तुत पुस्तक के प्रारम्भिक लेख भगवान् महावीर एवं अणुव्रत आंदोलन की जानकारी देते हैं तथा शेष लेखों में अनेक सामयिक विषयों पर ऊहापोह किया गया है। 'समस्या के बीज : हिंसा की मिट्टी' तथा 'लोकतंत्र और अहिंसा' जैसे कुछ लेख अहिंसक विश्व व्यवस्था का आधार प्रस्तुत करते हैं एवं युद्ध, हिंसा तथा आणविक नरसंहार से समूची दुनिया को बचाने के लिए एक नयी सोच तथा नया दिशादर्शन देते हैं। प्रस्तुत पुस्तक के ४२ लेखों में युगबोध एवं नैतिक अवधारणाओं को युगीन संदर्भ में अभिव्यक्ति दी गयी है । इसी कारण सोच एवं व्यवहार को संस्कारों एवं आदर्श मूल्यों से अनुप्राणित करने में यह पुस्तक अच्छी भूमिका अदा करती है। हर वर्ग के पाठक को नयी सामग्री परोसने वाली यह कृति वैचारिक क्रांति घटित करने में सक्षम है। अनैतिकता की धूप : अणुवत की छतरी ___ नैतिक आंदोलनों में अणुव्रत का अपना महत्त्वपूर्ण एवं सर्वोपरि स्थान है। इस आंदोलन ने व्यक्ति-चेतना और समूह-चेतना को समान रूप से प्रभावित किया है। इसे जनता तक पहुंचाने तथा नैतिक-मूल्यों का अवबोध कराने के लिए प्रश्नोत्तरों एवं निबंधों का एक संकलन 'अनैतिकता की धूप : अणुव्रत की छतरी' के नाम से प्रकाशित हुआ है। इस पुस्तक में प्राच्य एवं पाश्चात्य आचारशास्त्र विषयक चितन की धाराओं में कितना भेद और अभेद है, उसका सूक्ष्म विश्लेषण तथा दोनों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है । यह पुस्तक आचारशास्त्र और नीतिशास्त्र का तुलनात्मक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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