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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन २०१ किया है । इस पुस्तिका में अणुव्रत - अधिवेशन पर दिए गए एक महत्त्वपूर्ण प्रवचन का संकलन है । समीक्ष्य आलेख संयम एवं सादगी की पृष्ठभूमि पर आधारित अणुव्रत आंदोलन की महत्ता स्पष्ट करता है । अणुव्रती संघ " जो देश, काल की सीमा को लांघकर जीवन के शाश्वत मूल्यों का उद्घाटन करती है, वह श्रेष्ठ पुस्तक है" 'अणुव्रती संघ' पुस्तिका इसका एक उदाहरण है । इस कृति में 'अणुव्रत आंदोलन', जो अपने प्रारम्भिक काल में 'अणुव्रती संघ' के रूप में प्रसिद्ध था, उसके विधान एवं नियमावलियों की जानकारी दी गयी है । पुस्तक के आवरण पृष्ठ पर भूतपूर्व राष्ट्रपति डा० राजेन्द्रप्रसाद के अणुव्रत के बारे में विचार अंकित हैं । उसका कुछ अंश इस प्रकार है "अणुव्रती संघ की स्थापना करके और उसके काम को बढ़ाने के लिए अपना समय लगाकर आचार्यजी देश के लिए कल्याणकारी काम कर रहे हैं । .." यह संतोष की बात है कि आचार्यजी काल और देश की परिस्थिति को हमेशा सामने रखकर कार्यक्रम निर्धारित करते हैं और जो भिन्न-भिन्न श्रेणी के लोग हैं, उनकी भिन्न-भिन्न समस्याएं होती हैं, उन सबमें घुसकर भिन्न-भिन्न रीति से संगठित रूप से सदाचार और चरित्र को प्रोत्साहन देने का काम कर रहे हैं ।" इसमें अणुव्रती संघ के ८३ नियमों का उल्लेख है, जिनका समाहार आज ११ नियमों में हो गया है। अणुव्रत के नियमों की ऐतिहासिक जानकारी देने में इस पुस्तक का महत्त्वपूर्ण स्थान है । अन्त में " अणुव्रत और अणुव्रती संघ" नामक एक लेख भी प्रकाशित है । यह लेख 'अखिल भारतीय प्राच्य विद्या परिषद् के सतरहवें अधिवेशन के 'जैनदर्शन एवं प्राकृत विभाग' में प्रेषित किया गया था । इस महत्त्वपूर्ण लेख में अणुव्रती संघ की स्थापना का उद्देश्य तथा उसकी महत्ता का सर्वांगीण विवेचन है । मैत्री, संयम, समन्वय और त्याग पर आधारित अणुव्रत आंदोलन की संक्षिप्त जानकारी देने में इस पुस्तक का महत्त्वपूर्ण स्थान है । अतीत का अनावरण भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक आचार्य तुलसी एवं युवाचार्य महाप्रज्ञजी की संयुक्त कृति है । इसमें आगम एवं उपनिषदों के आधार पर २५ शोधपूर्ण निबंधों का संकलन है । आलोच्य ग्रंथ में इतिहास एवं भूगोल से सम्बन्धित अनेक महत्त्वपूर्ण एवं खोजपूर्ण लेखों का समाहार है । श्रमण संस्कृति की ऐतिहासिकता एवं महावीर के वंश के बारे में अनेक नयी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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