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________________ इक्कीस ० शिक्षा और स्वाध्याय में शाब्दिक ही नहीं, अर्थगत भेद भी है। अतः मैंने स्वाध्याय से संबंधित लेखों एवं प्रवचनों को शिक्षा और संस्कृति' वर्गीकरण के अन्तर्गत न रखकर 'विविध' वर्गीकरण में रखा है। किंतु कहीं कहीं इसमें व्युत्क्रम भी किया है। जैसे आचार के उपशीर्षक 'ज्ञानाचार' में संकलित अनेक प्रवचन ज्ञान के सैद्धान्तिक एवं दार्शनिक स्वरूप का विश्लेषण करने वाले हैं पर उनको 'जैनदर्शन' में न रखकर 'ज्ञानाचार' में ही रखा है, जिससे विद्यार्थी को ज्ञानसंबंधी सारी सामग्री एक ही स्थान पर मिल जाए। • अणुव्रत आंदोलन को गति देने एवं उसे जनव्यापी बनाने हेतु आचार्य तुलसी के प्रारम्भिक प्रवचनों में अणुव्रत की चर्चा प्रायः सभी प्रवचनों में मिलती है । पर जहां मुख्यता किसी दूसरे विषय की है, उन प्रवचनों एवं निबन्धों को अणुव्रत के अन्तर्गत न रखकर तद्-तद् विषयों में समाहार किया ० कहीं-कहीं ऐसा भी हुआ है कि जिस प्रवचन या निबन्ध में दो मुख्य विषयों की व्याख्या हुई है, यदि वही प्रवचन दो पुस्तकों में है तो मैंने उन दोनों को एक ही शीर्षक में न रखकर सलक्ष्य अलग-अलग शीर्षकों में रखा है, जिससे पाठक को दोनों विषयों के बारे में आचार्यश्री के विचारों को जानने की सुविधा हो सके । जैसे- 'लोकतंत्र और नैतिकता' यह आलेख अमृत संदेश तथा मंजिल की ओर, भाग-१ दोनों पुस्तकों में है। इनमें एक को 'नैतिकता और अणुव्रत' तथा दूसरे को राष्ट्र-चिंतन के अन्तर्गत लोकतंत्र में रखा है। इसी प्रकार 'मानव स्वभाव की विविधता, प्रवचन को आगम एवं मनोविज्ञान दोनों में रखा है। ___० 'नयी पीढी : नए संकेत' पुस्तक में ७ प्रवचन हैं, जो दिल्ली में समायोजित 'युवक प्रशिक्षण शिविर' में प्रदत्त हैं। यद्यपि सातों प्रवचन युवकों को संबोधित करके दिए गए हैं लेकिन विविध विषयों से संबंधित होने के कारण तद् तद् विषयक वर्गीकरण में उनका समावेश कर दिया है। जैसे 'जैन दर्शन में ईश्वर' को 'जैन दर्शन' के उपशीर्षक 'ईश्वर' के अन्तर्गत रखा है। ० 'प्रवचन डायरी' के नए संस्करण 'भोर भई' 'संभल सयाने !' 'सूरज ढल ना जाए' 'घर का रास्ता' आदि पुस्तकों में कुछ प्रवचन अत्यन्त संक्षिप्त हैं, पर उनका समावेश भी मैंने इस वर्गीकरण में किया है। ऐसे छोटे प्रवचनों को मैं 'उद्बोधन' शीर्षक के अन्तर्गत रखना चाहती थीं, पर इससे विषय की स्पष्टता एवं वर्गीकरण नहीं हो पाता। ० 'नैतिकता के नए चरण' पुस्तिका में पृष्ठ संख्या नहीं है। मैंने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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