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________________ बीस जन्मोत्सव ( जन्मदिन) आदि पर प्रदत्त प्रवचनों का भी समावेश है । विशेष व्यक्तियों से हुई वार्ताएं तथा संस्मरण आदि भी इसी में समाविष्ट हैं । जैसे लोंगोवालजी, विनोबाजी के मिलन- प्रसंग आदि । उत्तराधिकारी के मनोनयन एवं साध्वीप्रमुखाजी के चयन के संबंध में जो विशेष लेख हैं, वे अनुभूतिप्रधान एवं उनके व्यक्तिगत जीवन के बहुत बड़े निर्णय होने से 'अनुभव के स्वर' में रखे हैं । जहां आचार्य तुलसी ने अपने जीवन से संबंधित इतिहास को स्वयं मुखर किया है, उनका समाहार भी इसी में किया गया है । ● 'अध्यात्म' और 'योगसाधना' दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं पर मैंने इनको सलक्ष्य अलग-अलग किया है । 'अध्यात्म' में आत्मदर्शन या आत्मोन्मुख होने की प्रेरणा देने वाले प्रवचनों का समावेश है तथा ' योगसाधना' में ध्यान एवं प्रेक्षाध्यान के विविध रूपों को स्पष्ट करने वाले लेखों, प्रवचनों एवं वार्ताओं का समावेश है । फिर भी अध्यात्म के विषय में जानने वाले पाठक 'योगसाधना' तथा योगसाधना के बारे में जानकारी प्राप्त करने वाले पाठक 'अध्यात्म' में आए लेखों को देखना नहीं भूलेंगे । ● 'आगम' वर्गीकरण में आगम से संबंधित लेखों का संकलन है । साथ ही आगम-सूक्तों या आगम अध्यायों की व्याख्या करने वाले प्रवचनों का भी समावेश किया गया है । आगमसूत्र की व्याख्या होने पर भी विषय - गत व्याख्या करने वाले प्रवचनों को तद् तद् विषयों के अन्तर्गत भी रखा है । जैसे योगक्षेमवर्ष के प्रवचन लगभग आगम पर आधारित हैं । पर वे विषयबद्ध अधिक हैं, अत: उनको 'आगम' में न रखकर प्रतिपाद्य विषय के आधार पर अन्य शीर्षकों में भी रखा है । टिप्पण में आगमस्थल एवं पद्य का निर्देश करना आवश्यक था पर विस्तारभय के कारण ऐसा नहीं हो सका । • नैतिकता और अणुव्रत एक दूसरे के पर्याय हैं । अतः अभिन्नता के आधार पर इन दोनों विषयों से संबंधित प्रवचनों एवं लेखों को संयुक्त कर दिया है । मानवता एवं नैतिकता में भी चोली-दामन का सम्बन्ध है अतः मानवता से संबंधित शीर्षकों को भी 'नैतिकता और अणुव्रत' में समाविष्ट किया है । • 'मर्यादा महोत्सव' के अवसर पर प्रदत्त लेखों एवं प्रवचनों में मर्यादा और अनुशासन का वैशिष्ट्य उजागर हुआ है, अतः इसके कुछ लेखों को अनुशासन के अन्तर्गत रखा जा सकता था, पर 'मर्यादा महोत्सव' तेरापंथ का विशिष्ट उत्सव है अतः उन्हें 'तेरापंथ' के उपशीर्षक 'मर्यादा महोत्सव' में ही रखा है । इसके पीछे दृष्टि यही थी कि तेरापंथ पर शोध करने वाले विद्यार्थी को सारी सामग्री एक ही स्थान पर मिल जाए। इसी दृष्टि के कारण इस उपशीर्षक को समाज के अन्तर्गत 'पर्व और त्योहार' में भी नहीं रखा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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