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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन १२५ हो, नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की प्रतिष्ठा के लिए मैं सदैव उनके साथ हूं और रहूंगा।' आचार्य तुलसी का स्पष्ट कथन है कि सम्प्रदायों की अनेकता धर्म की एकता को खंडित नहीं कर सकती क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अपने आपमें एक सम्प्रदाय है । सम्प्रदाय को मिटाने का अर्थ है- व्यक्ति के अस्तित्व को मिटाना । साथ ही वे यह भी कहते हैं कि जिस प्रकार धूप और छांव को किसी घर के अन्दर बन्द नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार धर्म को भी किसी एक संप्रदाय या वर्ग तक सीमित नहीं किया जा सकता। धर्म तो आकाश की तरह व्यापक है, संप्रदाय तो उसमें झांकने की खिड़कियां हैं।" आचार्य तुलसी ने अणुव्रत के मंच पर सब धर्म के वक्ताओं को उन्मुक्त भाव से आमन्त्रित किया है । बम्बई में फादर विलियम अणुव्रत के बारे में अपने विचार व्यक्त करने लगे। कार्यक्रम समाप्ति पर एक भाई आचार्यश्री के पास आकर बोला-.-"आपने फादर विलियम को अपने मंच पर खड़ा करके खतरा मोल लिया है। तेरापन्थी भाई उसके भाषण से प्रभावित होकर ईसाई बन जाएंगे।' आचार्यश्री ने उस भाई को उत्तर देते हुए कहा-... "एक अन्य सम्प्रदाय का व्यक्ति यदि अपने जीवन पर अणुव्रत के प्रभाव को व्यक्त करता है तो इससे अन्य लोगों को भी अणुव्रती बनने की प्रेरणा मिलती है। इस स्थिति में यदि कोई तेरापन्थी ईसाई बनता है तो मुझे कोई चिन्ता नहीं । मैं तो ऐसे अनुयायी देखना चाहता हूं जो विरोधी तत्त्वों को सुनकर भी अप्रकम्पित रहें।" इस घटना के आलोक में उनके उदार एवं असाम्प्रदायिक विचारों को पढ़ा जा सकता है। रायपुर के अशांत एवं हिंसक वातावरण में वे सार्वजनिक प्रवचन में स्पष्ट शब्दों में कहते हैं-''यदि मेरे अनुयायी साम्प्रदायिक अशांति में योग देने की भावना रखेंगे तो मैं उनसे यही कहूंगा कि उन्होंने आचार्य तुलसी को पहचाना नही है।" इसी सन्दर्भ में एक पत्रकार के साथ हुई वार्ता को उद्धृत करना भी अप्रासंगिक नहीं होगा । पत्रकार ..."आचार्यजी ! क्या आप अणुव्रत के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों को तेरापन्थी बनाने की बात तो नहीं सोच रहे हैं ? आचार्यश्री— “यदि आप ऐसा सोचते हैं तो समझिए आप अंधकार में हैं, असम्भव कल्पना लेकर चलते हैं।' अणुव्रत की ओट में सम्प्रदाय बढ़ाने की बात सोचना क्या जनता के साथ धोखा नहीं होगा ? मेरी मान्यता है कि अणुव्रत के प्रकाश में व्यक्ति अपना जीवन देखे और उसे १. एक बूंद : एक सागर, पृ० १७२२ । २. जैन भारती, १२ नव० १९६१ । ३. जैन भारती, १८ नव० ६२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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