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________________ धर्म-चिन्तन धर्म का स्वरूप भारतीय संस्कृति की आत्मा धर्म है। यही कारण है कि यहां अनेक धर्म पल्लवित एवं पुष्पित हुए हैं। सबने अपने-अपने ढंग से धर्म की व्याख्या की है। सुप्रसिद्ध लेखक लार्ड मोर्ले ने लिखा है-"आज तक धर्म की लगभग १० हजार परिभाषाएं हो चुकी हैं; पर उनमें भी जैन, बौद्ध आदि कितने ही धर्म इन व्याख्याओं से बाहर रह जाते हैं।" लार्ड मोर्ले की इस बात से यह चिन्तन उभर कर सामने आता है कि ये सब परिभाषाएं धर्म-सम्प्रदाय की हुई हैं, धर्म की नहीं। आचार्य तुलसी कहते हैं-"सम्प्रदाय अनेक हो सकते हैं, पर उनमें निहित धर्म का सन्देश सबका एक है।" आचार्य तुलसी ने क्लिष्ट शब्दावली से बचकर धर्म के स्वरूप को सहज एवं सरल ढंग से प्रस्तुत किया है । उनके साफ, स्पष्ट, प्रौढ़ एवं सुलझे हुए विचारों ने जनता में धर्म के प्रति एक नई जिज्ञासा, नया आकर्षण और नया विश्वास जागृत किया है । वे इस सत्य को स्वीकारते हैं कि हम जिस युग में धर्म की पुनः प्रतिष्ठा की बात कर रहे हैं, वह उपलब्धि की दृष्टि से वैज्ञानिक, शक्ति की दृष्टि से आणविक और शिक्षा की दृष्टि से बौद्धिक है। क्या अबौद्धिक, अवैज्ञानिक और शक्तिहीन पद्धति से धर्म का उत्कर्ष सम्भव है ? । उनके द्वारा प्रतिपादित धर्म की कसौटी पर कट्टर नास्तिक भी अपने को धार्मिक कहने में गौरव का अनुभव करता है। धर्म के स्वरूप को विश्लेषित करती उनकी ये पंक्तियां कितनी वैज्ञानिक एवं वेधक बन पड़ी हैं--- "मैं उस धर्म का पक्षपाती नहीं हूं, जो केवल क्रियाकांडों तक सीमित है, जो जड़ उपासना पद्धति से सम्बन्धित है, जो अवस्था विशेष के बाद ही किया जाता है। अथवा जिसमें अन्य सब कार्यों से निवृत्त होने की अपेक्षा रहती है। मेरी दृष्टि में धर्म है--जीवन का स्वभाव । वे स्पष्ट शब्दों में कहते हैं-"जो धर्म जीवन को परिवर्तन की दिशा नहीं देता, मनुष्य के व्यवहार में जीवन्त नहीं होता, वह धर्म नहीं, सम्प्रदाय है, क्रियाकांड है, उपासना है।" पंथ, सम्प्रदाय या वर्ग तक ही धर्म को सीमित करने वालों की विवेक-चेतना जागृत करते हुए वे कहते हैं-"धर्म न तो पंथ, मत, सम्प्रदाय, १. क्या धर्म बुद्धिगम्य है ?, पृ० ७७। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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