SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आज हम हिन्दी में बोलते हैं। आगमों में सैकड़ों शब्द ऐसे हैं जिनका यही अर्थ होगा, ऐसा कोई नहीं कह सकता। मलयगिरी, अभयदेवसूरि, हरिभद्र, हेमचन्द्र आदि आचार्यों को भी इसकी कठिनाई का अनुभव हुआ। उन्हें भी स्थान-स्थान पर लिखना पड़ा कि यह शब्द समझ में नहीं आया। उन्होंने केवलीगम्य कहकर छोड़ दिया। कोई भी जैन मुनि यदि ऐसा कहे कि सूत्रों के सब शब्द मेरे हृदयंगम हो गए हैं तो वह कोरा दम्भ होगा। अनुमान लगाना ही पड़ता है। ज्यों-ज्यों गहराई में जाते हैं, उलझन बढ़ती जाती है। इन पन्द्रह हजार वर्षों में आचार्यों ने अपनी-अपनी दृष्टि से व्याख्या की है। इतने लम्बे काल में शब्दों के अर्थ बदल गए हैं। 'साहसिक' शब्द आज बहादुर का सूचक है, लेकिन पहले यही शब्द बिना सोचे-समझे करने वाले के अर्थ में था। कितना अर्थ बदल गया? भाषाशास्त्र का आज विकास हुआ है। भाषाशास्त्र में शब्दों का उत्कर्ष और अपकर्ष होता है। वह कालक्रम से होता है। ___ 'दास' शब्द महान् जाति का सूचक था। दासों की संस्कृति महान् रही है, जैसे इंगलैंड में लार्ड शब्द अभिजात्य वर्ग का सूचक होता है। उत्तर भारत में ब्राह्मण, क्षत्रिय उच्चवर्ग के द्योतक हैं। आर्यों ने दासों पर आक्रमण किया, वे पराजित हो गए। आज दास शब्द का अपकर्ष हो गया। लोग दास कहते ही चिढ़ने लग जाते हैं। प्रतिक्रमण में 'परपाषंड' शब्द आता है। आज पाषंडी शब्द कुत्सित अर्थ में प्रयुक्त होता है, लेकिन आवश्यक सूत्र के रचनाकाल में श्रमण सम्प्रदायों के अर्थ में उसका प्रयोग होता था। अशोक धर्म एक : मार्ग अनेक म १५१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy