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________________ महावीर का पुनर्जन्म पिता के ये तर्क पुत्रों को प्रभावित नहीं कर सके। उन्होंने कहा – 'वेद पढ़ने पर भी त्राण नहीं होता और पुत्र भी त्राण नहीं देते। ये काम - भोग क्षण भर सुख और चिरकाल दुःख देने वाले हैं। ये संसार-मुक्ति के विरोधी हैं और अनर्थों की खान हैं। जिसे पुत्र, स्त्रियां, काम-भोग आदि कामनाओं से मुक्ति नहीं मिलती, वह अतृप्ति की अग्नि में संतप्त रहता है। दूसरों के लिए प्रमत्त होकर धन की खोज करता हुआ वह जन्म और मृत्यु को प्राप्त होता है' वेया अहीया न भवंति ताणं, भुत्ता दिया निंति तमं तमेणं । जाया य पुत्तान हवंति ताणं, को णाम ते अणुमन्नेज्ज एवं ।। खणमेत्तसोक्खा बहुकालदुक्खा, पगामदुक्खा अणिगामसोक्खा । संसारमोक्खस्स विपक्खभूया, खाणी अणत्थाण उ कामभोगा ।। परिव्वयंते अणियत्तकामे, अहो य राओ परितप्पमाणे । अन्नप्पमत्ते धणमेसमाणे, पप्पोत्ति मच्चुं पुरिसे जरं च ।। राजपुरोहित कुमारों के मानस को बदल नहीं पाया। उनकी चेतना बदल १६४ चुकी थी । बदलाव : दो मार्ग बदलने के दो मार्ग हैं- निसर्ग और अधिगम । आदमी ने पिछले जन्म में ऐसा ही कोई क्षयोपशम किया होता है कि वह एकदम बदल जाता है । न उपदेश, न मार्गदर्शन, न चर्चा, न वार्ता, कुछ भी नहीं होता, किन्तु आदमी बदल जाता है । यह नैसर्गिक बदलाव है। इसमें बाहरी प्रयत्न की जरूरत नहीं होती। दूसरा मार्ग है अधिगम का । ज्ञान, अभ्यास, पुरुषार्थ और प्रयत्न से बदलाव आता है I निसर्ग से बदलाव वाली घटना हजारों में एक या दो घटित होती है। इसे आपवादिक बात कह सकते हैं। सामान्य मार्ग है अधिगम का आदमी बदलता है और वह प्रयत्न से बदलता है। वह सहसा नहीं बदलता। एक क्रम और पद्धति - सापेक्ष होता है बदलाव । निसर्ग में कोई पद्धति नहीं होती । वह अपथ का पथ है। आकाश में कोई मार्ग नहीं बनता । भूमि पर पदचिह्न बनते हैं, मार्ग और पगडंडियां बनती हैं। परिवर्तन की पद्धति परिवर्तन की एक पद्धति है और उस पद्धति को इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है अभीप्सान्वेषणं मार्गः सहायो भावना तथा । दृढनिश्चय इत्येते, हेतवः परिवर्तने ।। परिवर्तन में ये छह तत्त्व हेतु बनते हैं १. अभीप्सा ४. सहाय २. अन्वेषण ५. भावना ३. मार्ग ६. दृढ़ निश्चय परिवर्तन का पहला सूत्र है-अभीप्सा का जागना । व्यक्ति के मन में सबसे पहले यह अभीप्सा जाग जाए- मुझे बदलना है। जब तक यह अभीप्सा नहीं जागती, व्यक्ति को सम्मोहित किया जा सकता है, नींद की गोलियां देकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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