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________________ ७० जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग है वहां तक अपनी भावना को पहुंचा दें और उसे प्रेरित कर दें। यह सारा संभव प्रयोग है। कोई भी व्यक्ति इसे कर सकता है। प्राकृतिक चिकित्सक बतलाते हैं कि यदि कब्ज है तो बड़ी आंत के ज्ञानतंतुओं को निर्देश देना सीखो। उनसे बातचीत करना सीखो। वे आदेश नहीं मानेंगे। दुनिया में आदेश को मानना कोई जानता ही नहीं है। किन्तु मृदुता के साथ, सद्भावना के साथ, प्रियता के साथ उसको निर्देश दो। मित्रवत् व्यवहार करो। उन्हें तैयार करो, वे बात मानने लग जाएंगे। अपना काम करने भी लग जाएंगे। जिस-जिस अवयव के ज्ञानतंतु और कर्मतंतु अपना काम करना बंद कर देते हैं- यदि गहरा शरीर - प्रेक्षा का अनुभव हो और प्रत्येक सेल तक पहुंचने की साधना हो तो व्यक्ति अपनी भावना को उन तक पहुंचा सकता है और अपना काम उनसे करा भी सकता है। यह भावना का प्रयोग, संकल्प शक्ति का प्रयोग, अप्रभावित रहने का प्रयोग संतुलन का प्रयोग है। इससे जीवन में समता घटित होती है और आदमी सौ कदम आगे बढ़ जाता है। सहिष्णुता का प्रयोग परिवर्तन की प्रक्रिया का तीसरा सूत्र है- सहिष्णुता, सहन करना । परिवर्तन के लिए बहुत जरूरी है- सहना करना । जो सहन करना नहीं जानता, वह बदल नहीं सकता। जो व्यक्ति यह सोचता है - मैं यह काम करता हूं, लोग क्या कहेंगे? उनकी गति वहीं समाप्त हो जाती है। जो व्यक्ति बदलना चाहते हैं वे यह सोचें मुझे क्या करना है ? हमारी सहिष्णुता का विकास होना चाहिए। सहिष्णुता का अर्थ है- सर्दी को सहना, गर्मी को सहना । सर्दी मौसम की भी आती है और सर्दी भावना की भी आती है। अनुकूल कष्ट का नाम है सर्दी और प्रतिकूल कष्ट का नाम है गर्मी । जिस व्यक्ति ने अपने शरीर से सर्दी और गर्मी को नहीं सहा, वह कच्चा रह गया। जिस व्यक्ति ने अपने मानसिक जगत् में अनुकूलता को नहीं सहा, प्रतिकूलता को नहीं सहा, वह साधना के क्षेत्र में कच्चा आदमी रह गया। जब चाहें तब उसे दुःख दिया जा सकता है, दुःखी बनाया जा सकता है, जो पक जाता है उसे दुःख देना बड़ा कठिन होता है। जब तक मिट्टी का घड़ा कच्चा है, पक नहीं जाता, तब तक काम नहीं होता। न पानी रखा जा सकता है, न और कुछ ही रखा जा सकता है। उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। कच्चे पर कोई भरोसा नहीं किया जा सकता। भरोसा पैदा होता है पक जाने पर । साधना की आंच में अनुकूलता और प्रतिकूलता को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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