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________________ स्वतन्त्र व्यक्तित्व का निर्माण मैं अमुक होना चाहता हूं, अमुक प्रकार का होना चाहता हूं वह किसको निर्देश दे? मस्तिष्क को देने से ही काम नहीं चलेगा। निर्देश देना होगा प्रत्येक सेल को। प्रत्येक कोशिका तक इस बात को पहुंचा देना होगा कि मैं अमुक होना चाहता हूं। जब तक हम अपनी बात अपने शरीर की कोशिकाओं तक नहीं पहुंचाएंगे तब तक परिवर्तन शुरू नहीं होगा। कैसे पहुंचेंगे? इतनी सूक्ष्म कोशिकाएं हैं, वे हमारी बात को कैसे सुनेंगी? वे हमारी बात को कैसे जानेंगी? सामने कोई आदमी हो तो सुन भी सकता है। वे कैसे सुनेंगी? उन्हें सुनाने की प्रक्रिया है- भावना का प्रयोग, स्व-सम्मोहन का प्रयोग, ऑटो सजेशन। अपने आपको सूचना देना। अपने आप भावना के द्वारा सम्मोहित हो जाना। शरीर प्रेक्षा के द्वारा शरीर के भीतर प्रयोग करना, फिर संकल्प शक्ति के द्वारा, भावना के प्रयोग द्वारा, बदलने की भावना को उन तक पहुंचा देना। । प्रत्येक कोशिका में ज्ञान-केन्द्र है। प्रत्येक कोशिका में प्रकाश-केन्द्र है, बिजली का कारखाना है। हर कोशिका का अपना एक कारखाना है विद्युत का, शक्ति का। वे कोशिकाएं अपने ढंग से काम करती हैं। उनको बदलना है, उनको नया जन्म और नया रास्ता देना है तो अपनी भावना को उन तक पहुंचाना होगा। जब तक हमारी भावना उन तक नहीं पहुंचती, तब तक हम बदलं नहीं सकते। उदाहरण लेंआदमी अपनी क्रोध की आदत को बदलना चाहता है। संकल्प करता है- मैं क्रोध नहीं करूंगा। बार-बार संकल्प करता है, पर सफल नहीं होता। संकल्प तो करता है पर गुस्सा वैसा ही है। कितने ही लोग बुरे काम करते हैं और पछताते हैं। शराबी शराब को छोड़ने का संकल्प करते हैं, तम्बाकू का व्यसनी तम्बाकू को छोड़ने का संकल्प करता है, सोचता है, सेवन नहीं करूंगा, पर समय आता है, भीतर से ऐसी प्रबल मांग जागती है कि संकल्प धरा का धरा रह जाता है। ऐसा इसलिए होता है कि हम अपने संकल्प को वहां तक पहुंचा नहीं पाते। निर्णय का आधार हमारा निर्णय बाहर की घटनाओं के आधार पर होता है। जैसी घटना आंखों के सामने, विचार के सामने आती है हम वैसा ही सोचने लग जाते हैं। यह जो प्रक्रिया है इसका सम्बन्ध बाहरी घटनाओं से नहीं होता। हम बाहरी घटनाओं के आधार पर निर्णय लेंगे तो सफल नहीं हो पाएंगे। हम सारा का सारा निर्णय भीतर से लें। हमारे ज्ञानतन्तु, कोशिकाएं बदल सकती हैं, किन्तु उतना निश्चित अध्यवसाय, उतनी गहरी भावना और तन्मयता, उतना श्वास का प्रयोग कि हम प्राणशक्ति तक अपनी बात को पहुंचा दें, कोशिका में जो प्राणशक्ति काम कर रही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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