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________________ जीवन विज्ञान : सर्वागीण व्यक्तित्व विकास का सकल्प १८७ ५. यह वैज्ञानिक युग है । इस युग में एक विद्यार्थी के लिए ध्यान क्यों जरूरी है ? क्या वैज्ञानिक ध्यान की उपयोगिता को स्वीकार करता हैं ? ध्यान सत्य की खोज का उपाय है। एक वैज्ञानिक सत्य खोजता है, वह ध्यान के द्वारा ही खोजता है । जो ध्यान नहीं करता वह वैज्ञानिक नहीं होता । एकाग्रता के बिना सत्य को नहीं खोजा जा सकता । जब आईंस्टीन से पूछा गया कि आपको सापेक्षवाद का सिद्धांत कैसे मिला ? उन्होंने कहा- मैं नहीं जानता । एक दिन मैं बगीचे में घूम रहा था और मुझे अचानक वह सिद्धांत प्राप्त हो गया । बुद्धि के बल पर सत्य का अवतरण नहीं होता । सत्य का अवतरण होता है एकाग्रता के द्वारा । हम पवनार गए। आचार्यश्री ने विनोबा से पूछा- आप ध्यान कब करते हैं ? विनोबा बोले- आचार्यजी ! ऐसा मत पूछिए कि ध्यान कब करता हूं, ऐसा पूछिए कि ध्यान कब नहीं करता । विनोबा ध्यान में सदा मग्न रहते थे । वे सत्यान्वेषी थे । क्षेत्र चाहे विज्ञान का हो या धर्म या शिक्षा का हो, एकाग्रता या ध्यान बहुत आवश्यक है। बच्चों को एकाग्रता की शिक्षा और अभ्यास प्रारंभ से ही करा देना चाहिए। बच्चों में चंचलता अधिक होती है। धीरे-धीरे उसे एकाग्रता में ले जाना बहुत महत्वपूर्ण बात है । ६. ध्यान के कितने अंग हैं ? उनकी निष्पत्ति क्या है ? ध्यान के पांच अंग हैं-वितर्क, विचार, प्रीति, सुख और एकाग्रता । वितर्क का अर्थ है - चित्त को एक आलंबन पर टिका देना । ब्लेक बोर्ड पर एक शब्द लिख दिया और विद्यार्थी से कहा जाए कि इसी को पढ़ो, इसी को देखो, इसी पर ध्यान टिकाने का अभ्यास करो। हमारा मन नाना आलंबनों पर जाता है। कभी वह गेट को देखता है, कभी खिड़की की और कभी आदमी को । वह कभी कहीं और कभी कहीं भटकता रहता है । एक मिनिट में दसस-बीस आलंबनों को बदल देता है । आलंबनों के साथ-साथ चित्त की गति भी बदलती रहती है। इसलिए एक आलंबन पर मन को टिकाने का अभ्यास कराना बहुत जरूरी है। यह ध्यान की पहली अवस्था है । ध्यान का दूसरा अंग है- 'विचार' । इससे स्वरूप का बोध होने लगता है । जब श्वास पर ध्यान किया जाएगा तब श्वास के स्वरूप का बोध होने लगेगा। श्वास क्या है, यह स्पष्ट हो जाएगा। जब तक चित्त को श्वास पर नहीं टिकाया जाता तब तक श्वास की जानकारी नहीं हो सकती। मैंने एक भाई से कहा-अपना ध्यान कपड़े पर टिकाओ । उसे ध्यान से देखो। कुछ समय तक वह कपड़े को देखता रहा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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