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________________ १८६ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग का परिवर्तन । सहिष्णुता, अनुशासन, दायित्वबोध आदि का विकास बौद्धिक विकास के साथ अत्यन्त अपेक्षित है । हमारे शरीर में उत्पन्न होने वाले व्यवहार रसायनों से नियंत्रित होते हैं आंतरिक प्रयोगों के द्वारा रासायनिक संतुलन स्थापित किया जा सकता है। उससे व्यवहार परिवर्तन हो जाते हैं । इस पद्धति से विद्यार्थी के व्यवहार का परिवर्तन देखा गया है । ३. अभिभावक और शिक्षक के बदले बिना क्या विघार्थी बदल पाएगा ? अणुव्रत आंदोलन ने शिक्षा के क्षेत्र में त्रिकोणात्मक अभियान शुरू किया था । अभिभावक, शिक्षक और विद्यार्थी-ये एक त्रिकोण हैं । इसका एक साथ बदलना जरूरी है। पूरे समाज में चरित्र का विकास हो, तभी विद्यार्थी में चरित्र का विकास हो सकता है, इस अवधारणा को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। किंतु चरित्र - विकास की प्रक्रिया का प्रारम्भ कहां से हो, यह एक विमर्शनीय बिंदु हैं । विद्यार्थी के संस्कार अपरिपक्व होते हैं, इसलिए उसमें चरित्र का बीज बोना जितना सरल है उतना परिपक्व वय वाले मनुष्य में नहीं होता । नैतिक मूल्य, सम्प्रदाय- निरपेक्षता, लोकतन्त्रीय समाजवादी समाजव्यवस्था, जाति-भेद और रंग्र-भेद की भावना से मुक्ति, इन सबका विकास बचपन से ही जितनी सरलता से किया जा सकता है इतना बाद में नहीं किया जा सकता। इसलिए शिक्षा को केवल बौद्धिक विकासपरक नहीं, किंतु भावनापरक भी होना चाहिए। 1 ४. क्या शिक्षकों का जीवन-विज्ञान की पद्धति से भावात्मक लगाव हुआ है? इस पद्धति में पहले अध्यापक प्रशिक्षण लेते हैं, फिर वे विद्यार्थियों को प्रयोग करवाते हैं । जिन अध्यापकों ने प्रशिक्षण लिया, वे स्वयं अपने जीवन में लाभ का अनुभव करते हैं । इनके साथ उनकी रसात्मकता जुड़ी है। जिस प्रणाली के प्रति प्रशिक्षण की अभिरूचि नहीं जुड़ती, उसके अच्छे परिणाम नहीं आ सकते। जिससे अपना शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होता है, मानसिक तनाव कम होता है, नशे की आदत से छुटकारा होता है, मानसिक शान्ति की अनुभूति होती है उसके प्रति सहज ही लगाव उत्पन्न हो जाता है। पचास या साठ प्रतिशत अध्यापकों की रुचि और उतनी ही विद्यार्थियों में परिवर्तन की सम्भावना की जा सकती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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