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________________ क्षीर-नीर : १३३ आत्मिक दृष्टि से संयम को दिए जानेवाले सांसारिक सहयोग को धार्मिक उच्चता नहीं दी जा सकती! ___ तर्क की पद्धति एक होती है, उसके क्षेत्र भले ही भिन्न हों। राजनीति के क्षेत्र में एक दूसरे देश के विरुद्ध शस्त्र-सज्जित करना यदि चिन्तनीय हो सकता है तो आत्मिक क्षेत्र में एक जीव को दूसरे जीवों के विरुद्ध शस्त्र-सज्जित करना क्या चिन्तनीय नहीं होता? भगवान् ने कहा-असंयम शस्त्र है। एक जीव दूसरे जीवों की हिंसा इसलिए करता है कि वह असंयमी है। संयमी अपने खानपान के लिए भी किसी जीव की हिंसा नहीं करता। वह माधुकरी वृत्ति के द्वारा सहज प्राप्त भिक्षा से अपना जीवन चलाता है। असंयमी को भिक्षा लेने का अधिकार नहीं। वह अपने को एक सीमा तक ही संयत कर सकता है। यदि हम सैनिक सहयोग पर केवल सामरिक दृष्टि से विचार करते हैं तो उन अमरीकी अधिकारियों की दृष्टि में 'पाकिस्तान को जो सहयोग दिया जा रहा है वह उचित है, किन्तु उन पर नैतिक दृष्टि से विचार करने वाले और चर्च सीनेटर गोरे की दृष्टि में वह उचित नहीं है। उसे उचित मानने के पीछे भी एक दृष्टिकोण है और अनुचित मानने के पीछे भी एक दृष्टिकोण है। उचित मानने का दृष्टिकोण स्वार्थपूर्ण है और अनुचित मानने का दृष्टिकोण वस्तुस्थिति से संबंधित है। आचार्य भिक्षु ने कहा-मैं असंयमी को सांसारिक सहयोग देने का समर्थन करने में अपने को असमर्थ पाता हूं। इसमें आध्यात्मिक तथ्यों का विश्लेषण है। केवल सामाजिक स्वार्थ की दृष्टि से सोचने वाले, सम्भव है, इस विशुद्ध आध्यात्मिक विचार से सहमत न भी हो सकें। २. अहिंसा का ध्येय कोई आदमी नीम, आम आदि वृक्षों को न काटने का व्रत लेता है। वृक्ष सुरक्षित रहते हैं; कोई आदमी तालाब, सर आदि न सुखाने का नियम १. ठाणं, १०/६, ३: दस विधे सत्थे पं. तं.सत्थमग्गी विसं लोणं, सिणेहो खरमविलं। दुप्पउत्तो भणो वाया, काओ भावो य अविरती॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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