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________________ १३२ : भिक्षु विचार दर्शन घरवालों को सारे समाचार सुनाए। वे बहुत कुपित हुए। वे उस चोर को साथ लेकर नगर में आए। दरवाजे पर चिट्ठी चिपका दी। उसमें निन्यानबे नागरिकों को मारकर नौ का बदला लेने की बात लिखी हुई थी और चोर को बचाने वाले साहूकार को छूट दी गई थी। अब नगर में चोरों का आतंक फैला। हत्याओं पर हत्याएं होने लगीं। किसी का बेटा मारा गया, किसी का बाप, किसी की पत्नी। नगर में कोलाहल मचा। लोग उस साहूकार की निन्दा करने लगे, उसे कोसने लगे-“सेठ के पास धन अधिक था तो उसे कुएं में क्यों नहीं डाल दिया? चोर को सहायता दे, हमारे प्रियजनों की हत्याएं क्यों करवाई?' उस साहूकार की दशा दयनीय हो गई। उसे अपने बचाव के लिए नगर छोड़ दूसरी जगह जाना पड़ा। सेठ ने चोर को प्राणदान दिया और अमरीका पाकिस्तान को सुरक्षा-साधन दे रहा है। अमरीका, रूस और चीन के विरुद्ध पाकिस्तान को सैनिक सहायता दे रहा है। सेठ ने उन निन्यानवें व्यक्तियों के विरुद्ध, जो चोरों द्वारा मारे गए, उस चोर की सहायता की। असंयमी प्राणी कभी भी किसी भी प्राणी को मार सकता है, उसे सहायता देना सब जीवों के विरुद्ध है। इसी दृष्टि से आचार्य भिक्षु ने कहा-मैं असंयमी जीवों को सांसारिक सहयोग देने का समर्थन करने में अपने को असमर्थ पाता हूं। यह तर्क हो सकता है कि सेठ ने निन्यानवे के विरुद्ध चोर की सहायता नहीं की, केवल चोर को जीवित रखने के लिए प्रयत्न किया। इसी तरह का अंश इस संवाद में मिलता है कि अमरीका भारत के विरुद्ध पाकिस्तान को सहयोग नहीं दे रहा है। चोर निन्यानबे व्यक्तियों की हत्या कर सकता है, पाकिस्तान उस सैनिक सहायता का प्रयोग भारत के विरुद्ध भी कर सकता है। जिस प्रकार इन सहयोगों से हत्या और आक्रमण की कड़ी जुड़ी हुई है, उसी प्रकार असंयमी का सहयोग देने के साथ भी सूक्ष्म हिंसा का मनोभाव जुड़ा हुआ है। इसलिए परिणाम की दृष्टि से चोर का सहयोग करने के कार्य को महत्त्व नहीं दिया जा सकता। जिस प्रकार राजनैतिक दूरदर्शित की दृष्टि से सैनिक सहयोग का समर्थन नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार १. भिक्खु दृष्टान्त, १४०, पृ. ५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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