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________________ वह पाप कैसे करेगा? धर्म का एक महाप्रश्न है, जीवन की सफलता का एक महान् सूत्र हैआदमी पाप न करे, पाप से बचे । पाप शब्द बहुत रूखा, कड़वा, कांटे जैसा चुभने वाला शब्द है। कोई पापी बनना नहीं चाहता, पाप करने वाला भी पापी कहलाना नहीं चाहता । धर्म के क्षेत्र में यह शब्द जितना गर्हणीय और अवांछनीय बना है, उतना दूसरा नहीं। विकट प्रश्न __ कठिनाई यह है-आदमी पाप नहीं चाहता, उसका फल नहीं चाहता किन्तु पाप करता है। फलं पापस्य नेच्छन्ति, पापं कुर्वन्ति मानवाः । फलं धर्मस्य वाञ्छति, न धर्म विहितादराः ॥ व्यक्ति पुण्य का फल चाहता है किन्तु पुण्य नहीं करता। पाप का फल नहीं चाहता किन्तु पाप को करता चला जाता है । एक विकट प्रश्न रहा है-- पाप कौन नहीं करता ? पाप को कैसे छोड़ा जा सकता है ? इस प्रश्न का उत्तर भगवान् महावीर ने दिया-जो त्रिविद्य है, जो परम-ज्ञानी और परमदर्शी है, जो समत्वदर्शी है, वह आदमी पाप नहीं करता । इन तीनों गुणों का विकास होने पर व्यक्ति पाप से बचता है । त्रिविध कौन ? त्रिविद्य वही है, जो तीन विद्याओं को जानता है । तीन विद्याएं हैं० पूर्वजन्म का ज्ञान ० जन्म और मरण के रहस्य का ज्ञान ० चित्तमल के क्षय का ज्ञान-चित्त पर मल कैसे, जमता है और उसका क्षय कैसे होता है, इसका ज्ञान । जो इन तीन विद्याओं को जान लेता है, वह पाप नहीं कर पाता। जब-जब' पूर्वजन्म की स्मृति होती है, आदमी के जीवन की धारा बदल जाती है। जैन आगम साहित्य में ऐसे अनेक प्रसंग मिलते हैं। मेघ कुमार के जीवन को देखें । मृगापुत्र का जीवन पढ़ें। उन्हें पूर्वजन्म की स्मृति हुई और जीवन की धारा बदल गई। पाप का कारण जो व्यक्ति परम को देखता है, जानता है, वह पाप नहीं करता। जब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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