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________________ जैन साहित्य ८५ १६. पंचकल्प १३. भगवती १४. महा-निशीथ १७. ओघनियुक्ति १५. जीतकल्प प्रथम आठ चूणियों के कर्ता जिनदासमहत्तर हैं। इनका जीवनकाल विक्रम की सातवीं शताब्दी है। जीतकल्प-चूर्णी के कर्ता सिद्धसेनसूरि हैं। उनका जीवन-काल विक्रम की बारहवीं शताब्दी है। बृहत्कल्प चूर्णी प्रलम्बसूरि की कृति है। शेष चूर्णिकारों के विषय में अभी जानकारी नहीं मिल रही है। दशवैकालिक की एक चूणि और है । उसके कर्ता हैं-अगस्त्यसिंह मुनि । टीकाएं और टीकाकार आगमों के प्रथम संस्कृत-टीकाकार हरिभद्रसूरि हैं। उन्होंने आवश्यक, दशवैकालिक, नंदी, अनुयोगद्वार, जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति और जीवाभिगम-इन आगमों पर टीकाएं लिखीं। विक्रम की तीसरी शताब्दी में उमास्वाति ने जैन परम्परा में जो संस्कृत-वाङ्मय का द्वार खोला, वह अब विस्तृत होने लगा। शीलांकसूरि ने आचारांग और सूत्रकृतांग पर टीकाएं लिखीं। शेष नौ अंगों के टीकाकार हैं-अभयदेवसरि । अनुयोगद्वार पर मलधारी हेमचन्द्र की टीका है। नन्दी, प्रज्ञापना, व्यवहार, चंद्रप्रज्ञप्ति, जोवाभिगम, आवश्यक, बहत्कल्प, राजप्रश्नीय आदि के टीकाकार मलयगिरि हैं। आगम-साहित्य की समृद्धि के साथ-साथ न्यायशास्त्र के साहित्य का भी विकास हआ। वैदिक और बौद्ध न्यायशास्त्रियों ने अपने-अपने तत्त्वों को तर्क की कसौटी पर कसकर जनता के सम्मुख रखने का यत्न किया तब जैन न्यायशास्त्री भी इस ओर मुड़े। विक्रम की पांचवीं शताब्दी में न्याय का जो नया स्रोत बहा, वह बारहवीं शताब्दी में बहुत व्यापक हो गया। ___ अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में न्यायशास्त्रियों की गति कुछ शिथिल हो गई। आगम के व्याख्याकारों की परम्परा आगे भी चली। विक्रम की अठारहवीं शताब्दी में पार्वचन्द्रसूरि तथा स्थानकवासी परम्परा के धर्मसी मुनि ने गुजराती-राजस्थानीमिश्रित भाषा में आगमों पर स्तबक लिखे। विक्रम की उन्नीसवीं सदी में श्रीमद् भिक्षुस्वामी और जयाचार्य आगम के यशस्वी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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