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________________ ८४ जैन परम्परा का इतिहास मूल पूरक १. आवश्यक-नियुक्ति ओघ-नियुक्ति २. दशवैकालिक-नियुक्ति पिण्ड-नियुक्ति ३. बृहत्कल्प-नियुक्ति पंचकल्प-नियुक्ति ४. आचारांग-नियुक्ति निशीथ-नियुक्ति इनकी भाषा प्राकृत है। इनमें संक्षिप्त शैली के आधार पर अनेक विषय और पारिभाषिक शब्द प्रतिपादित हैं। ये भाष्य और चर्णियों के लिए आधारभूत हैं। ये पद्यबद्ध व्याख्याएं हैं। भाष्य और भाष्यकार आगमों और नियुक्तियों के आशय को स्पष्ट करने के लिए भाष्य लिखे गए । अब तक दस भाष्य उपलब्ध हैं : १. आवश्यक-भाष्य ६. व्यवहार-भाष्य २. दशवैकालिक-भाष्य ७. निशीथ-भाष्य ३. उत्तराध्ययन-भाष्य ८. जीतकल्प-भाष्य ४. बृहत्कल्प-भाष्य ६. ओघनियुक्ति-भाष्य ५. पंचकल्प-भाष्य १०. पिण्डनियुक्ति-भाष्य इनमें बृहत्कल्प और ओघनियुक्ति पर दो-दो भाष्य मिलते हैं- लघुभाष्य और बृहद्भाष्य । इनकी भाषा प्राकृत है। ये भी पद्यबद्ध हैं। विशेषावश्यक-भाष्य और जीतकल्प-भाष्य-ये आचार्य जिनभद्रगणी [वि० सातवीं शताब्दी] की रचनाएं हैं। बृहद्कल्प-लघु-भाष्य और पंचकल्प-महाभाष्य-ये संघदासगणी [वि० छठी शताब्दी] की रचनाएं हैं। चूणियां और चूणिकार चूर्णियां गद्यात्मक हैं । इनकी भाषा प्राकृत या संस्कृत-मिश्रित प्राकृत है। निम्न आगम-ग्रंथों पर चूर्णियां मिलती हैं : १. आवश्यक ७. सूत्रकृतांग २. दशवकालिक ८. निशीथ ३. नन्दी ६. व्यवहार ४. अनुयोगद्वार १०. दशाश्रु तस्कन्ध ५. उत्तराध्ययन ११. बृहत्कल्प ६. आचारांग १२. जीवाभिगम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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