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________________ जैन साहित्य स्थविरों ने इसका पल्लवन किया। आगम-सूत्रों की संख्या हजारों तक पहुंच गई। ___ भगवान के चौदह हजार शिष्य प्रकरणकार [ग्रंथकार थे । उस समय लिखने की परंपरा नहीं थी। सारा वाङ्मय स्मृति पर आधारित था। आगमों का रचना-क्रम दृष्टिवाद के पांच विभाग हैं :-परिकर्म, सूत्र, पूर्वानुयोग, पूर्वगत और चूलिका। पूर्वगत के चौदह विभाग हैं। वे पूर्व कहलाते हैं। उनका परिमाण बहत ही विशाल है। वे श्रत या शब्द-ज्ञान के समस्त विषय के अक्षय-कोष होते हैं। उनकी रचना के बारे में दो विचारधाराएं हैं--पहली के अनुसार भगवान् महावीर के पूर्व ही ज्ञान-राशि का यह भाग चला आ रहा था, इसलिए उत्तरवर्ती साहित्य-रचना के -समय इसे 'पूर्व' कहा गया। दूसरी विचारणा के अनुसार द्वादशांगी से पूर्व ये रचे गए, इसलिए इन्हें 'पूर्व' कहा गया। __ पूर्वो में सारा श्रुत समा जाता है। किन्तु साधारण बुद्धि वाले उसे पढ़ नहीं सकते । उनके लिए द्वादशांगी की रचना की गई। आगम-साहित्य में अध्ययन-परम्परा के तीन क्रम मिलते हैं। कुछ श्रमण चतुर्दशपूर्वी होते थे, कुछ द्वादशांगी के विद्वान् और कुछ सामायिक आदि ग्यारह अंगों के अध्येता। चतुर्दशपूर्वी श्रमणों का अधिक महत्त्व रहा है। उन्हें श्रुत-केवली कहा गया है। पूर्वो की भाषा संस्कृत मानी जाती है। इनका विषय गहन और भाषा सहज सुबोध नहीं थी। इसलिए अल्पमति लोगों के लिए द्वादशांगी रची गई। कहा भी है : "बालस्त्रीमन्दमूर्खाणां, नृणां चारित्रकाङ्क्षिणाम् । अनुग्रहार्थं तत्त्वज्ञः, सिद्धान्तः प्राकृते कृतः॥" आगमों को भाषा जैन आगमों की भाषा अर्ध-मागधी है। आगम-साहित्य के अनुसार तीर्थंकर अर्ध-मागधी में उपदेश देते हैं। इसे उस समय की दिव्य भाषा और इसका प्रयोग करने वाले को भाषार्य कहा है। यह प्राकृत का ही एक रूप है। यह मगध के एक भाग में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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