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________________ ८६ मैं कुछ होना चाहता हूं दीक्षा-स्थल है-वटवृक्ष । शुभ मुहूर्त में दीक्षा दी। आचार्य शकुन को जानते हैं, मुहर्त को जानते हैं, देश और काल को जानते हैं। आचार्य जंगल में जा रहे थे। साथ में एक दीक्षार्थी व्यक्ति था। आचार्य मुहूर्त के ज्ञाता थे। उन्होंने देखा-शुभ मुहूर्त चला जा रहा है। उन्होंने उस दीक्षार्थी को गृहस्थ-वेष में ही दीक्षा दे दी। वह आभूषण भी पहले हुए था। अगले गांव में पहुंच कर उसका गृहस्थ वेष और आभूषण गृहस्थों को संभला दिए गए। लाडनूं की घटना है। जयाचार्य शौचार्थ जंगल में गए। देखा, शकुन अच्छा हुआ है। तत्काल साधुओं से कहा-सुजानगढ़ के लिए प्रस्थान कर दें, शकुन बहुत अच्छा हुआ है। जयाचार्य कुछ साधुओं को लेकर सुजानगढ़ की ओर चल पड़े। किसी साधु-साध्वी या श्रावक-श्राविकाओं को कुछ भी पता नहीं चला। स्थान पर सब उनके लौटने की प्रतीक्षा कर रहे थे। बाद में कुछ साधुओं को भेजकर सामान मंगवा लिया गया। आचार्य भिक्षु विहार कर जा रहे थे। गांव के बाहर आये। शकुन अच्छा नहीं हुआ। वापस लौट आए। ___ आचार्य इन सबके जानकार होते हैं। देश-कालविद् होना आचार्य का एक गुण है, अतिशय है। एक क्षेत्र में होने वाला कार्य सफल होता है और वही कार्य दूसरे क्षेत्र में करने पर विफल हो जाता है। एक काल में होने वाला कार्य सफल होता है और वही कार्य दुसरे समय में करने पर विफल हो जाता है। सौरमंडल से आने वाले विकिरण हमारे प्रत्येक कार्य को प्रभावित करते हैं, जैसे ज्योतिष का सौरमंडल है, वैसे ही अध्यात्म का भी सौरमंडल है। ज्योतिष में नौ ग्रह माने जाते हैं। अध्यात्म में भी नौ ग्रह सम्मत हैं दायां मस्तिष्क-गुरु का क्षेत्र लघु मस्तिष्क-बुध का क्षेत्र। शक्तिकेन्द्र-राहु का क्षेत्र, बुध का क्षेत्र। आनन्दकेन्द्र-मंगल का क्षेत्र । विशुद्धिकेन्द्र-चन्द्रमा का क्षेत्र। स्वास्थ्यकेन्द्र-शुक्र का क्षेत्र। तैजसकेन्द्र-सूर्य का क्षेत्र। ज्ञानकेन्द्र-शनि का क्षेत्र। सारा सौरमंडल हमारे शरीर के भीतर है। यदि कुण्डली के आधार पर यह ज्ञात हो कि अमुक ग्रह अभी शुभ नहीं है, उसकी गति हितकर नहीं है, उसको बदलने का उपाय आपके पास है। ज्योतिष भाग्य-भरोसे बैठने का सिद्धान्त नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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