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________________ ध्यान एक परम पुरुषार्थ इससे भी खतरनाक है मन की बीमारी। जब मन आहत होता है, उसे कोई आघात लगता है तब पैर वहीं रुक जाते हैं। एक आदमी बहुत अच्छा काम करता है। कोई उसे कह देता है-गधे हो, बेबकूफ हो। यह भी कोई काम करने का तरीका है? इतना सुनते ही उसके मन में आग सुलग जाती है, काम करने की भावना टूट जाती है, शक्ति क्षीण हो जाती है। ___ महाभारत का युद्ध हो रहा था। एक ओर अर्जुन और उसके सारथी थे कृष्ण। दूसरी ओर कर्ण और उसका सारथी था शल्य । युधिष्ठिर ने शल्य से कहा-तुम हमारे विरुद्ध हथियार अवश्य उठाना, पर मेरी एक बात मानना, जब भी कर्ण प्रहार करे तब कहना-यह भी कोई प्रहार होता है! तुम प्रहार करना जानते ही नहीं। बस, इन वाक्यों को दोहराते रहना। शल्य ने युधिष्ठिर की बात स्वीकार कर ली। युद्ध प्रारम्भ हुआ। कर्ण के प्रत्येक प्रहार पर शल्य कहता-यह भी कोई प्रहार है? तुम प्रहार करना जानते ही नहीं। इधर अर्जुन के प्रत्येक प्रहार पर कृष्ण कहते-वाह! कैसा प्रहार किया है! वाह! क्या निशाना साधा है! प्रत्येक वार पर कर्ण हतोत्साहित होता और अर्जुन प्रोत्साहित होता। कर्ण का बल क्षीण होता गया, उसकी शक्ति टूटती गई, वह शक्तिहीन हो गया। अर्जुन की शक्ति बढ़ती गई। वह पहले से अधिक शक्तिशाली हो गया। जब मन पर आघात होता है तब शक्ति सो जाती है। बड़े-बड़े कर्मठ लोग भी अकर्मण्य बन जाते हैं, जब मन पर चोट लगती है। मन की चोट बहुत भयंकर होती है और जब मन रोग-ग्रस्त हो जाता है तब सारी शक्तियां क्षीण हो जाती हैं। तीसरा अवरोध है-प्रभाव का। प्रभाव भी आदमी को बहुत प्रभावित करता है। कोई व्यक्ति ज्योतिष पर विश्वास करे या न करे, किन्तु वह इस सचाई को अस्वीकार नहीं कर सकता कि ग्रहों का हमारे जीवन पर प्रभाव पड़ता है। यह परम वैज्ञानिक तथ्य है। यह अन्धविश्वास नहीं है। लोग ज्योतिष को यों ही टाल देते हैं। यह एक एकांगी दृष्टि का परिणाम है। यदि सर्वांगीण दृष्टि का विकास हो तो ज्योतिष को अस्वीकार करने का कोई कारण नहीं रह जाता। जैन आचार्य ने एक ग्रन्थ लिखा 'गणिविज्जा' (सं. गणिविद्या) । आचार्य को इसका अध्ययन करना अत्यन्त आवश्यक होता है। किस मुहूर्त में और कहां दीक्षा देनी चाहिए? कब देनी चाहिए? अध्ययन कब शुरू करना चाहिए? किस दिशा के सम्मुख होकर करना चाहिए-यह सारा विषय उस ग्रन्थ में वर्णित है। प्रत्येक आयाम के पीछे दो पक्ष छिपे हुए होते हैं-देश और काल। देश और काल के बिना कोई भी प्रवृत्ति प्रारम्भ नहीं हो सकती। मैं अभी-अभी पुराने साधु-साध्वियों की जीवनियां पढ़ रहा था। आचार्यों ने उन्हें दीक्षा दी। उनका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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