SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ब्रह्मचर्य का शरीर-शास्त्रीय अध्ययन ग्रन्थियां शरीर-शास्त्र के अनुसार शरीर में आठ ग्रन्थियां होती हैं : १. श्लैष्मिक या पीयूष (पिच्यूटरी) २. कण्ठमणि (थाइरायड) ३. वृषण ४. सर्वकिण्वी (पैनक्रिया) ५. एड्रीनल या सुप्रारीनल ६. पैराथाइरायड ७. तृतीय नेत्र (पीनियल बाडी) ८: यौवन लुप्त (थाइमस) पीयूष ग्रन्थि यह ग्रन्थि दिमाग के नीचे होती है। यह थाइरायड, पैराथाइरायड, एडीनल, पैनक्रिया व वषण कोषों के स्रावों को नियंत्रित करती है। इस ग्रन्थि के रसों का कार्य इस प्रकार है : प्रथम रस का कार्य—शरीर-विकास । द्वितीय रस का कार्य-शरीर के जल तथा नमक का संतुलन । तृतीय रस का कार्य—गुर्दे के कार्य का नियंत्रण। पीयूष ग्रन्थि काम कम करे तो काम-शक्ति नष्ट हो जाती है । कण्ठमणि ग्रन्थि - यह गर्दन में श्वास नली से जुड़ी हुई होती है। इसका आकार तितली के समान होता है। इसका रस-स्राव अधिक होने पर शरीर को अधिक पोषण की जरूरत होती है । क्षुधा बढ़ जाती है। किन्तु अन्य अंग साथ नहीं देते इसलिए वह कमी पूरी नहीं होती। ऐसी स्थिति में दुर्बलता आ जाती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003076
Book TitleTat Do Pravah Ek
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1967
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy