SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०२ । तट दो : प्रवाह एक तो वे युवक और युवती के सर्वांगीण विकास में जादू की तरह नवजीवन का प्रभाव छोड़ते हैं। । हेलेना राइट ने इसके लिए बड़ा उपयोगी मार्ग बतलाया है-आत्मविकास के लिए कोई एक कार्य अपना लेना चाहिए और एकाग्रचित्त से दिन में कई बार यह सोचना चाहिए कि जननेन्द्रिय में केन्द्रित प्राण-शक्ति सारे स्नायु मण्डल में प्रवाहित होकर अंग-प्रत्यंग को पुष्ट कर रही है। थोड़े समय में ही इस मानसिक सूचना से तन और मन नये चैतन्य स्फूर्त एवं प्रफुल्ल हो उठेगे। इन साधनों के सिवाय शास्त्रों का अध्ययन, मनन, चिन्तन, व्यत्सर्ग आदि साधन भी मन को एकाग्र करने में सहायक होते हैं। मेरा विश्वास है कि ब्रह्मचर्य के लिए केवल मानसिक चिन्तन ही पर्याप्त नहीं है, दैहिक प्रश्नों पर भी ध्यान देना आवश्यक है। भोजन-सम्बन्धी विवेक और मलशुद्धि का ज्ञान भी कम महत्त्व का नहीं है। यदि इनकी उपेक्षा की गई तो मानसिक चिन्तन अकेला पड़ जायेगा। मानसिक पवित्रता, प्रतिभा की सूक्ष्मता, धैर्य और मानसिक विकास के लिए ब्रह्मचर्य आवश्यक है । और उसकी सिद्धि के लिए उक्त साधनों का अभ्यास आवश्यक है।* * १-२-६५ को साधु-साध्वियों के प्रणिधान-कक्ष (साधना-शिविर) में दिए गए भाषण से। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003076
Book TitleTat Do Pravah Ek
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1967
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy