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________________ १०६ / अश्रुवीणा अनुवाद- आँसूओ इस निश्छिद्र भगवान् में जो पुनः छिद्र का अन्वेषण करते हैं वे कदाचित् भी कार्य-सफलता को प्राप्त नहीं करते हैं । (अर्थात् उनकी याचना भगवान के पास सफल नहीं होती है।) छिद्रयुक्त कान गुण सहित (शब्द सहित) होते हुए भी भगवान् को थोड़ा भी बाधित नहीं कर पाता है। इसलिए विशिष्ट शक्तिशाली एवं कुशलता से युक्त होकर जिनेन्द्र (भगवान् महावीर) के पास जाना चाहिए। (३३) स्फूात्मानः प्रसरणसहा भेदसंघातजाताः, संके तैर्वा सहजशक नैर्वेदयन्तोऽर्थजातम् । शब्दा यूयं प्रकृतिपटवोऽनक्षराः साक्षरा वा, नाश्वस्तां मां किमपि शृणुयादित्यमुं प्रेरयध्वम्॥ अन्वय- शब्दा! यूयम् स्फूर्त्यमानः प्रसरणसहा भेदसंघातजाताः प्रकृति पटवो संकेतैः सहजशकनैर्वा अर्थ जातम् वेदयन्तो। अनक्षरा साक्षरा वा। माम् नाश्वश्ताम् किमपि श्रृणुयाद् इति प्रेरयध्वम्। अनुवाद- शब्दों! तुम स्फुरित होने वाले, फैलने में समर्थ पुद्गल स्कन्धों के भेद-समूह से उत्पन्न, स्वभावतः कुशल एवं संकेत अथवा स्वाभाविक शक्ति से अर्थसमूह (वस्तु के अर्थ) का बोध कराते हो। अक्षर और अनक्षर रूप से तुम्हारे दो भेद हैं। तुम भगवान् को प्रेरित करो की मुझ व्यथिता के दुःख को किंचित् सुने (मेरी ओर ध्यान दे, मेरे ऊपर कृपा करे)। व्याख्या- चन्दनबाला दुःख पीड़ित है, भगवान् के लौट जाने पर वह रूदन करने लगी। आँसूओ के साथ सिसकियाँ भी निकल रही हैं। उन्हीं सिसकियों (शब्दों) को चन्दनबाला सम्बोधित कर रही है। इसमें परिकर, काव्यलिंग आदि अलंकार हैं। इसमें शब्द के स्वरूप की ओर निर्देश किया गया है। अमरकोशकार ने शब्द के तीन अर्थ माने हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003074
Book TitleAshruvina
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size7 MB
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