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________________ अश्रुवीणा / १०५ मच जाता है । करुणा का सागर तरंगायित होने लगता है। बाहर प्रथमत: आँसूओ के रूप में उसी हृदयगत करुणा की अभिव्यक्ति होती है। आँसूओ के साथ सिसकियाँ भी होती हैं जो आँसूओ की शक्ति को अधिक बलवान् कर देती हैं। भक्तजन जब प्रभु के चरणों में अपने भावों को पहुँचाना चाहता है तो आँसू सहायक होते हैं। चन्दनबाला दुःखी है, अधीर है लेकिन अवश्यकरणीय का सम्यक् ध्यान है। प्रमादी नहीं है। इसलिए अपने दूत को हमेशा सतर्क करती है।इस श्लोक में समुच्चय, अर्थान्तरन्यास एवं अनुप्रास अलंकार हैं। अन्य कारण समान रूप से सहायक हो तो समुच्चय होता है । खलेकपोत-न्याय से समुच्चय अलंकार होता है। तात्पर्य है कि जैसे खलिहान में अनेक कबूतर एक साथ उतरते हैं उसी प्रकार अनेक कारण कार्य सिद्धि में समान रूप से सहायक हो वहाँ समुच्चय होता है। तत्सिद्धिहेतावेकस्मिन् यत्रान्यत्तत्करं भवेत्। - काव्यप्रकाश सज्जा-साज-सामान, आवश्यक उपकरण, वेशभूषा। न्यून-सज्जा भवेत-कहीं तैयारी कम न हो जाए, ह्रस्व न हो जाए। किसी भी कार्य की सफलता तभी सिद्ध हो सकती है जब उसकी पूर्व तैयारी पूर्ण रूप से हो।कवि ने इस सूत्र के माध्यम से सामाजिक सफलता के लिए अच्छा उपाय बताया है। अर्थान्तरन्यास अलंकार है। (यन्मुकानाम्) इस सामान्य के द्वारा विशेष का समर्थन हुआ है। (३२) निश्छिद्रेऽस्मिन् भगवति पुनश्छिद्रमन्वेषयेयुः, संपत्स्यन्ते सफल विधयस्ते कदाचिन्न तत्र। कर्णश्छिद्रं सदपि सगुणं बाधते तं न किञ्चि त्तद् यातोच्चैजिनमुपगताः प्राणवत्तां पटिष्ठाम्॥ अन्वय- अस्मिन् निश्छिद्रे भगवति (ये) पुनः छिद्रमन्वेषयेयुः। ते कदाचिद् सफलविधयः न संपत्स्यन्ते। सगुणम् कर्णच्छिद्रम् सदपि तं किंचित् न बाधते। तद् जिनमुपगताः उच्चैः प्राणवत्तां पटिष्ठाम् यातः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003074
Book TitleAshruvina
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size7 MB
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