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________________ १२८ : एसो पंच णमोक्कारो करना, आन्तरिक आत्मिक शक्तियों को जगाना ही हमारा लक्ष्य है। प्रश्न-जिस प्रकार आपने रंगों की चर्चा की, उसी प्रकार संस्थानों की भी चर्चा हो तो मंत्र-जप में गति हो सकती है। मंत्रों की आकृतियों के बारे कुछ स्पष्ट करें। उत्तर---पुद्गल के चार गुण हैं-वर्ण, गंध, रस और स्पर्श। उसी प्रकार उसका एक लक्षण है—संस्थान । आकार-रचना का भी बहुत बड़ा महत्त्व होता है। उसमें आकर्षण की क्षमता पैदा हो जाती है। इसी आधार पर मंत्रों का विकास हुआ। मंत्रों के संस्थान कहें या यंत्र—दोनों की एक ही बात है ! मंत्र और यंत्र—दोनों की विचित्र शक्तियां हैं। भयंकर पीलिया रोग जो दवाइयों से नहीं मिटता, वह 'यंत्र' से मिट जाता है। प्रश्न होता है कि यंत्र तो केवल रेखाओं के ढांचे मात्र हैं। उनसे क्या हो सकता है ? रेखाओं में इतनी बड़ी शक्ति कहां से आ जाती है ? आज यह प्रश्न अनुत्तरित नहीं रहा है। आज के वैज्ञानिकों ने जब पिरामिडों पर खोज की तो विचित्र तथ्य सामने आए। ऐसी बातें सामने आईं कि आप उनकी कल्पना तक नहीं कर सकते। आज पाश्चात्य देशों में इनका बहुत प्रचलन हो रहा है। दूध, दही, फल रखने के लिए पिरामिडों के आकार के बर्तन काम में लिये जाते हैं। अस्पताले पिरामिडों के आकार में बनी हैं, जिनके परिणाम बहुत अच्छे आए हैं। मन की एकाग्रता की वृद्धि के लिए ये पिरामिड बहुत उपयोगी सिद्ध हुए हैं। पिरामिडों में रखा हुआ पानी औषधि के रूप में काम आ रहा है। उससे अनेक रोग मिटते हैं। सौर परिवार से जो विकिरण आते हैं उनको ग्रहण करने में ये पिरामिड उपयोगी हैं। इन पिरामिडों की व्याख्या ने यंत्रों की प्राचीन व्याख्या को पुनः उज्जीवित कर दिया। आकृतियों में कितनी शक्ति होती है—यह आज रहस्य नहीं रहा । हर पुद्गल पुद्गल का आकर्षण करता है। हर परमाणु परमाणु का आकर्षण करता है। अमुक रचना अमुक प्रकार के परमाणुओं को आकृष्ट करती है। सभी आकृतियां एक ही प्रकार के परमाणुओं का आकर्षण नहीं करतीं। विभिन्न प्रकार के आकार विभिन्न प्रकार के परमाणुओं को ग्रहण करते हैं। इस सिद्धान्त के आधार पर यंत्रों के विभिन्न न्यासों का विकास प्रतीत होता है। नमस्कार महामंत्र के साथ-साथ विभिन्न मंत्रों का विकास हुआ। वैसे ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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