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________________ जिज्ञासितम् : १२७ इसी प्रकार भिन्न-भिन्न प्रयोजनों के लिए उसके भिन्न-भिन्न रूपों की उपासना विहित है। हमें चुनाव करना होता है कि हम किस चैतन्यकेन्द्र को जागृत करना चाहते हैं और उसके द्वारा मन की किस प्रकार की शक्ति को प्राप्त करना चाहते हैं। यह सारा किसी मार्ग-दर्शक से जाना जा सकता है। दूसरा प्रश्न है विधि-विधान का । जो मंत्र की आराधना करना चाहें वे सबसे पहले किसी गुरु से मंत्र की दीक्षा लें। निश्चित दिशा की ओर मुंह कर निश्चित स्थान और निश्चित समय में आराधना करनी चाहिए। प्रतिदिन एक ही दिशा, एक ही स्थान और एक ही समय । जिस स्थान पर आराधना की जाती है वहां दूसरों का प्रवेश निषिद्ध होना चाहिए। आराधना के समय दूसरा कोई व्यक्ति वहां उपस्थित नहीं होना चाहिए। और भी अनेक विधि-विधान हैं। कुछ तो सभी मंत्रों के लिए सामान्य विधान हैं और कुछ विशेष मंत्रों के लिए विशेष विधान हैं। ___ सामान्यतः प्रत्येक व्यक्ति को, नींद खुलते ही, सात-आठ बार नमस्कार मंत्र का जाप करना चाहिए, फिर अपनी विशेष आराधना के समय विशेष प्रकार से जाप करना चाहिए। यह बहुत महत्त्वपूर्ण विषय है। इसकी लंबी चर्चा अभी नहीं की जाएगी। संक्षिप्त चर्चा से साधक को दिशा निर्देश मिल जाएगा । प्रश्न—नमस्कार महामंत्र की आराधना का लक्ष्य क्या होना चाहिए ? आखिर हम इससे क्या पाना चाहते हैं ? उत्तर—हमारा लक्ष्य होना चाहिए—मन की शक्तियों का विकास, आत्मा का जागरण, अपनी आत्मा में अर्हत और सिद्धस्वरूप को प्रकट करना। धार्मिक व्यक्तियों का यही लक्ष्य होना चाहिए। अन्यान्य व्यक्ति दूसरे ऐहिक लाभ के लिए भी इस महामंत्र की आराधना करते हैं। यह व्यक्ति के आकर्षण और परिस्थिति पर निर्भर करता है। हमारी प्रेक्षा-ध्यान पद्धति का मूल लक्ष्य है-आध्यात्मिक बीमारियों को समाप्त करना। तीन बीमारियां हैं-आवरण, विकार और अन्तराय। आवरण को दूर करने के लिए भी शक्ति चाहिए, विकार को मिटाने के लिए भी शक्ति चाहिए और अन्तराय से छुटकारा पाने के लिए भी शक्ति चाहिए। शक्ति के बिना कुछ भी नहीं होता। मंत्र की आराधना से शक्ति जागृत होती है। अन्तराय को बहुत क्षीण किया जा सकता है। अन्तराय कर्म को क्षीण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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